भारत में पेगासस मामले को जासूसी ही नहीं माना जा रहा है, लेकिन फ्रांस ने इसे आपराधिक मामला मानते हुए जांच शुरू कर दी है

0

पेगासस मामला पूरी दुनिया में चर्चा में है। 16 मीडिया समूहों की साझा पड़ताल के बाद जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के 10 देशों में नेताओं, अफसरों और पत्रकारों के फोन की जासूसी की जा रही थी। इस जासूसी कांड में अब तक भारत के भी 38 पत्रकार, 3 प्रमुख विपक्षी नेता, 2 मंत्री और एक जज का नाम सामने आया है। चूंकि, जासूसी करने वाले सॉफ्टवेयर की निर्माता कंपनी इस प्रोडक्ट को सिर्फ सरकारों को ही उपलब्ध कराती है, इसलिए इसे लेकर खुद सरकार सवालों के घेरे में है। भारत सरकार ने इस मामले में जांच से इंकार कर दिया है, लेकिन फ्रांस में इस मामले की जांच भी शुरू हो गई है।

फ्रांस में इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म करने वाली संस्था मीडियापार के फाउंडर एडवी प्लेनेल और उनकी सहयोगी पत्रकार लीनाग ब्रेडॉ के नाम भी उस लिस्ट में हैं, जिनके फोन की पेगासस के जरिए जासूसी की गई। मीडियापार वही NGO है, जिसकी शिकायत पर फ्रांस में राफेल मामले में करप्शन की जांच शुरू हुई है।

मीडियापार की ही खोजी पत्रकार लीनाग ब्रेडॉ ने पेगासस मामले में भी फ्रांस में शिकायत दर्ज कराई है। जिसके बाद इस मामले की जांच शुरू कर दी गई है। दैनिक भास्कर ने लीनाग ब्रेडॉ से इस पूरे मसले पर बात की। आप भी पढ़िए यह बातचीत…

सवाल: भारत समेत दुनिया के 10 से ज्यादा देशों के पत्रकारों के नाम पेगासस जासूसी वाली लिस्ट में हैं। आपको कब पता चला कि आपके फोन की जासूसी की जा रही है?
जवाब: 
पेगासस मामले को सामने लाने वाली संस्था ‘फॉरबिडन स्टोरीज’ की टीम ने मुझसे संपर्क किया था और बताया था कि हमारे फोन की जासूसी की जा रही है। ‘फॉरबिडेन स्टोरीज’ इस बारे में काफी दिनों से इंवेस्टिगेशन कर रही थी। इसके बाद उन्होंने फोरेंसिक जांच के लिए हमारा फोन मांगा। कुछ सप्ताह पहले हमने बर्लिन में एमनेस्टी इंटरनेशनल के केंद्र में अपने फोन जमा कराए थे। फोन की तकनीकी जांच में पता चला कि हमारे फोन को 2019 में हैक किया गया था। यानी यह तय है कि मेरे फोन की कई संवेदनशील जानकारियां दूसरों तक पहुंची।

सवाल: भारत में तो अब तक सामने आई सूची में ज्यादातर नाम पत्रकारों के ही हैं। दुनियाभर की सरकारें पत्रकारों के फोन की जासूसी क्यों करा रही हैं?
जवाब:
 मीडिया पर बंदिश की कोशिश दुनिया भर की सरकारों के लिए नई नहीं है। जर्नलिस्ट्स के फोन क्यों हैक किए जा रहे हैं और कौन करा रहा है, अलग-अलग देशों में इसकी अलग-अलग वजहें होंगी। मेरे फोन की हैकिंग का शक मोरक्को सरकार पर है। अब तक जो सामने आया है, उसके मुताबिक जून 2019 के आखिर में मीडियापार के फाउंडर एडवी प्लेनेल मोरक्को गए थे। उसके तुरंत बाद ही उनका फोन हैक किया गया, क्योंकि वहां उन्होंने वहां प्रेस की आजादी और नागरिक अधिकारों को लेकर सवाल उठाए थे।

मेरा फोन फरवरी 2019 से मई 2020 के बीच 15 महीने हैक रहा। हां, मैंने 2015 में मोरक्को की खुफिया एजेंसी के बारे में रिपोर्ट की थी। यह एक वजह हो सकती है, लेकिन यह भी सवाल है कि 2015 की रिपोर्ट के 4 साल बाद मेरे फोन से डेटा क्यों चुराया जा रहा था? मैं यौन हिंसा जैसे मुद्दों पर रिपोर्ट करती हूं। मोरक्को इन विषयों का इस्तेमाल विपक्षियों पर निशाना साधने के लिए भी करता है। हो सकता है, इस वजह से मेरे फोन की जासूसी की गई हो।

सवाल: पत्रकार होने के नाते आपके फोन की जासूसी की गई, लेकिन इससे आपकी बेहद निजी जानकारियां भी हैकर्स के पास चली जाती हैं। इस बारे में जानने के बाद आपको सबसे ज्यादा चिंता किस बात की हुई।
जवाब: 
जाहिर है कि सबसे ज्यादा चिंता अपनी प्राइवेसी को लेकर ही हुई। इसके अलावा मुझे इस बात का भी डर है कि मेरे फोन के जासूसी से वो सोर्स भी खतरे में आ जाते हैं, जिनसे मुझे खबरें पता चलती हैं।

सवाल: दुनिया भर में पेगासस की जासूसी का शोर है, लेकिन शायद आप पहली पत्रकार हैं, जिसने इस मामले की शिकायत दर्ज करवाई। आपकी शिकायत में सबसे प्रमुख मुद्दा क्या है?
जवाब: 
मैंने अपनी शिकायत में अपनी प्राइवेसी का मुद्दा सबसे जोरदार तरीके से उठाया है। पत्रकार हो या कोई और उसके निजी स्पेस में दखल नहीं दिया जा सकता। इसके अलावा ये प्रेस की आजादी पर हमला है। शिकायत में कुछ तकनीकी पक्ष भी हैं। जैसे डिवाइस को जासूसी सॉफ्टवेयर से इंफेक्ट करना। ये बिना किसी कानूनी अनुमति के हमारी मर्जी के खिलाफ किया गया है जो कि अपराध है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here