मकर संक्रांति में कहां मनाए पिकनिक?

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सोमवार 15 जनवरी जिला मुख्यालय सहित तहसील व अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में मकर संक्रांति का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। जहां मकर संक्रांति के त्योहार पर लोग बड़ी संख्या में धार्मिक स्थलों के साथ ही पिकनिक स्थलों पर जाकर पर्व विशेष का आनंद लेंगे। लेकिन नगर व नगर के आसपास व जिले के प्रसिद्ध पिकनिक स्थलों की बात करें तो लगभग सभी पिकनिक स्थल अपनी बदहाली पर आंसू बहते नजर आ रहे हैं।जिन पर ध्यान न देने के चलते वे अपना अस्तित्व खोते हुए दिखाई दे रहे हैं ।तो वहीं अब लोगों ने भी इन पर्यटक स्थलों से अपनी दूरी बनानी शुरू कर दी है।जिसमें से गर्रा का वनस्पति उद्यान भी एक है। जहां आने जाने वाले लोगो से शुल्क की तो भरपूर वसूली की जा रही है लेकिन जिस गार्डन और व्यवस्थाओं के नाम पर शुल्क वसूला जा रहा है उसका जीर्णोद्धार करने की जहमत तक संबंधित विभाग द्वारा नहीं उठाई जा रही है।बताया जा रहा है कि मकर संक्रांति त्योहार के अवसर पर बड़ी संख्या में जिले के लोग धार्मिक स्थलों के साथ ही पिकनिक स्थलों पर त्योहार को मनाने पहुंचते है। सबसे अधिक लोग जिले के प्रसिद्ध वनस्पति उद्यान में पिकनिक मनाने के लिए आते है और उद्यान प्रबंधन बकायदा लोगों से शुल्क भी वसूलता है, लेकिन शुल्क लेने के बाद भी इस उद्यान को संवारने के लिए जिम्मेदार सिर्फ बजट आने पर जीर्णोद्धार करने की बात कहकर अपने पल्ला झाड़ रहे है। बता दें कि वन मंडल सामान्य बालाघाट व वनपरिक्षेत्र वारासिवनी के आरक्षित कक्ष क्रमांक 513 अंतर्गत आने वाला वनस्पति उद्यान कभी सिर्फ बालाघाट ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों के साथ ही महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ में भी वन्यप्राणियों के लिए प्रसिद्ध रहा है, और यहां कभी दूर-दूर से पर्यटक वन्यप्राणियों को देखने के लिए भी आते थे, लेकिन वनस्पति उद्यान को लेकर दिनों-दिन जिम्मेदारों की अनदेखी से वह अपनी रौनक के साथ ही अस्तित्व को भी खोता जा रहा है। यहां स्थिति यहां तक निर्मित हो चुकी है कि गिर चुके वाच टाव, पगौड़ा के साथ ही क्षतिग्रस्त हो रही यादों को सहेजा तक नहीं जा रहा है।

116 एकड़ में फैला है वनस्पति उद्यान,
बात अगर गर्रा स्थित वनस्पति उद्यान की करे तो यह उघान 116 एकड़ में फैला है और इसमें कभी तेंदूआ जैसे हिंसक वन्यप्राणी के साथ ही शाकाहारी सहित अन्य वन्यप्राणी रहते थे जिनके रहने के स्थान व पिंजरे वर्तमान समय में भी उद्यान में तो जरुर है लेकिन वह भी जीर्ण-शीर्ण स्थिति में पहुंच गए है। जिसे सहेजने की जिम्मेदारी भी जिम्मेदारो द्वारा नही उठाई जा रही है। वहीं इस उद्यान में वर्तमान समय में भी घना जंगल है, जहां जैव विविधता से संबंधित पेड़-पौधों के साथ ही मोर या फिर अन्य शाकारी वन्यप्राणी विचरण करते भी देखे जाते है। इस उघान पर ध्यान न देने के चलते यह गार्डन बदहाल हो चुका है। तो वही जहां मकर संक्रांति पर लोगों को मायूसी का सामना करना पड़ सकता है।

रेस्ट हाउस भी हो रहा जर्जर, मनोरंजन की सामग्री भी हो रही खराब
वनस्पति उद्यान में एक सालों पुराना रेस्ट हाउस भी बना हुआ है, जहां वनविभाग के अधिकारी भ्रमण के दौरान रुकते है, लेकिन वर्तमान समय में इस ओर भी ध्यान नहीं दिए जाने से यह रेस्ट हाउस भी जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। वहीं बच्चों के मनोरंजन के लिए लगाए गए झूले सहित अन्य मनोरंजन की सामग्री भी जीर्ण-शीर्ण हालत में पहुंच गई है।ऐसे में मकर संक्रांति का पर्व व पिकनिक मनाने की सोच रहे लोगों को मायूसी का सामना करना पड़ सकता है।

शुल्क वसूली भरपूर, पर की जा रही अनदेखी
वनस्पति उद्यान में भ्रमण के लिए पैदल या फिर साइकिल से आने लोगों से प्रति व्यक्ति दस रुपये, मोटर साइकिल से आने वाले से 25 रुपये, मोटर यान से आने वालों से 100 रुपये व मिनी बस से आने वालों से 500 रुपये शुल्क लिया जाता है और राजस्व की पूर्ति की जाती है, बावजूद इसके इस प्रसिद्ध उद्यान को लेकर अनदेखी पूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है।

नक्शा हो गया क्षतिग्रस्त, एक सिपाही के भरोसे उद्यान
47 हेक्टेयर में फैले वनस्पित उद्यान की जिम्मेदारी वर्तमान समय में वनविभाग के एक सिपाही को सौंपी गई है, लेकिन विडंबना यह है कि उसके पास वनस्पति उद्यान के साथ ही अन्य वनक्षेत्रों का भी प्रभार है।ऐसे में दिन के समय चार स्थायी कर्मी व रात के समय एक स्थायी कर्मी के भरोसे ही बागडोर रहती है। वहीं उद्यान पहुंचने वाले लोगों को उद्यान के कोन-कोन से मार्ग का भ्रमण करना है।इसके लिए एक पूरे उद्यान का नक्शा भी बनाया गया है,लेकिन देखरेख के अभाव में यह नक्शा भी क्षतिग्रस्त हो गया है और इसमें मार्ग देखना भी मुश्किल हो चुका है। ऐसे में मकर संक्रांति पर आने वाले दार्शनिक लोगों को जहां मनोरंजन के पर्याप्त साधन नहीं मिल पाएंगे तो वहीं दूसरी ओर उन्हें यहां से मायूस लौटना भी पड़ सकता है।

स्पॉट की खल रही कमी
मकर संक्रांति में वॉटनिकल गार्डन, बजरंगघाट, गांगुलपारा झरना, डूटी डेम इत्यादि पिकनिक स्पॉट में पिकनिक मनाने वालों की धूम रहती है।इन पर्यटन स्थलों में प्राकृतिक छटाओं के बीच पिकनिक मनाने का आनंद ही कुछ और है। लेकिन अब असुरक्षा और अव्यवस्थाओं के कारण लोग यहां जाने से कतराते है। इन स्थलों में उगी बड़ी-बड़ी झाडिय़ा इनके बीच जहरीले जींव जन्तुओं का खतरा पिकनिक मनाने वालों को रोकता है। तो वही इन जगहों पर मकर संक्रांति पर्व या फिर पिकनिक मनाने के पहले जैसे इंतजाम भी नहीं है। यही कारण है कि त्यौहार पर लोगों को पिकनिक स्पॉटों की कमी खल रही है।

पहाड़ी के पत्थर खतरनाक
जिले से समीपस्थ स्थापित गांगुलपारा, डूटी डेम का अस्तित्व भी अब विलुप्त होने की कगार में है। इस पर्यटन स्थल में बहते झरने, कटीली पहाडिय़ां एवं प्राकृतिक सौन्दर्य होने से यहॉ काफी संख्या में लोग आते थे। वर्तमान में सुरक्षा की दृष्टि से कोई इंतजाम नहीं होने, भयंकर रूप से दिखाई पड़ती पहाडिय़ों को फैंसिग सहित खतरनाक स्थानों को इंगित कराने वाले सूचना बोर्ड की कमी भी महसूस की जा रही है। यदि यहां कोई चोटिल या दुर्घटना ग्रस्त होता है, कई किमी दूर तक उपचार के कोई साधन भी मुहैया नहीं है।

हट्टा की बावली व लांजी के किले से लोग बना रहे दूरी
इसके अलावा बात अगर हट्टा की बावली और लांजी के किले की करें तो यहां से भी लोग अब धीरे-धीरे अपनी दूरियां बनाने लगे हैं बताया जा रहा है कि हट्टा की बावली जिसमें कभी दो मंजिला तक पानी हुआ करता था, आज एक मंजिल पानी में ही आकर ठहर गई है। इसी तरह लांजी का किला भी सुरक्षा के अभाव में धीरे-धीरे कर जीर्ण-शीर्ण हो रहा है।

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