मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2011 में मेडिकल यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी। सरकार का मानना था, मध्यप्रदेश में एमबीबीएस, डेंटल, नर्सिंग, आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथी, योग, प्राकृतिक चिकित्सा,पैरामेडिकल और अन्य मेडिकल डिग्री तथा डिप्लोमा एक ही विश्वविद्यालय द्वारा जारी हों।
लगभग 10 वर्ष के बाद भी सरकारी स्तर पर मेडिकल यूनिवर्सिटी को व्यवस्थित रूप से करने के लिए ना तो सरकारी स्तर पर प्रयास हुए। समय पर शासन द्वारा विश्वविद्यालय के लिए राशि आवंटित नहीं की गई। कुलपति और रजिस्ट्रार के चयन में गैर जिम्मेदारी से कार्य किया गया। नवीन यूनिवर्सिटी में कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या में भर्ती नहीं की गई। जिसके परिणाम स्वरुप मध्यप्रदेश की मेडिकल यूनिवर्सिटी व्यापम जैसे घोटाले के लिए पहचानी जा रही है।
हाल ही में हाई कोर्ट की जांच समिति द्वारा जो रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश की गई है। उसके अनुसार छात्र छात्राओं को पास करने और फेल करने के खेल में भारी रिश्वतखोरी हुई है। रिपोर्ट में विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ टी एन दुबे और इंचार्ज रजिस्टार डॉक्टर जेके गुप्ता की कार्यप्रणाली को जांच समिति ने आपत्तिजनक और उन्हें दोषी माना है। तमाम स्तर पर गड़बड़ियां किए जाने की रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश की गई है। इस रिपोर्ट में कार्यवाहक रजिस्टार जेके गुप्ता को परीक्षा कराने वाली एजेंसी से रिश्वत मांगने, वर्तमान कुलसचिव डॉ बुधौलिया द्वारा जांच कार्य के लिए दस्तावेज उपलब्ध कराने में असहयोग करने, तत्कालीन कुलपति डॉ टी एन दुबे पर छात्रों को पास कराने ओर परीक्षा परिणामों का
रिवैल्यूएशन करने में गड़बड़ी करने और 278 छात्र-छात्राओं के नाम का मिलान नहीं होना, जांच समिति ने गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने 5 सदस्यों की जांच कमेटी बनाई थी। इस कमेटी की जांच रिपोर्ट में यह बड़ा खुलासा हुआ है।
प्रभारी कुलपति
पूर्व कुलपति डॉ टी एन दुबे के इस्तीफा देने के बाद कुलपति का प्रभाव संभागीय आयुक्त को दिया गया है। इसके बाद मेडिकल यूनिवर्सिटी की हालत और खराब है। संभागीय आयुक्त की व्यस्तता और मेडिकल यूनिवर्सिटी में पर्याप्त स्टाफ और विशेषज्ञ नहीं होने के कारण अभी भी स्थितियों में कोई सुधार नहीं है। भगवान भरोसे मेडिकल यूनिवर्सिटी चल रही है। जिसका खामियाजा मेडिकल छात्र छात्राओं को उठाना पड़ रहा है। कॉलेजों की मान्यता, छात्रों के इनरोलमेन्ट, समय पर परीक्षा नहीं कराने और समय पर परीक्षा परिणाम घोषित नहीं होने के कारण प्रदेश के हजारों छात्र छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। वही पीजी कोर्स के लिए भी समय पर परीक्षा परिणाम घोषित नहीं होने से छात्रों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। हाई कोर्ट इस मामले में अब क्या निर्णय देती है, और शासन अपने स्तर पर कुलपति, रजिस्टार और मेडिकल यूनिवर्सिटी को पर्याप्त स्टाफ उपलब्ध कराने के लिए कौन सी पहल करता है। यह देखना होगा।
मेडिकल यूनिवर्सिटी और निजी यूनिवर्सिटी
मध्य प्रदेश के बड़े प्राइवेट मेडिकल कॉलेज संचालको ने अपनी खुद की यूनिवर्सिटी बना ली है। प्राइवेट यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज के छात्र छात्राओं नर्सिंग एवं अन्य कोर्स की निर्धारित समय पर परीक्षा होती है। उनके परिणाम भी समय पर घोषित हो जाते हैं।उसके स्थान पर मेडिकल यूनिवर्सिटी में परीक्षाओं की भारी फीस,इनरोलमेंट में देरी, रिजल्ट लेट होने तथा लालफीताशाही के कारण छात्रों का भविष्य अंधकारमय है। मेडिकल यूनिवर्सिटी में जो निजी मेडिकल कॉलेज और सरकारी मेडिकल कॉलेजों ने मान्यता प्राप्त की है। उनके हजारों छात्रों के भविष्य के साथ लगातार साल दर साल खिलवाड़ हो रहा है। मेडिकल यूनिवर्सिटी की लापरवाही और
बदइंतजमी के कारण, निजी मेडिकल कॉलेज जिन्होंने अभी तक अपनी यूनिवर्सिटी नहीं बनाई है। वह भी मेडिकल विश्वविद्यालय की घटिया कार्यप्रणाली के चलते स्वयं की यूनिवर्सिटी बनाने का प्रयास कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने निजी विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए नियमों में हाल ही में नियमों को सरल किया है। उसको देखते हुए मध्य प्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी का भविष्य अच्छा नहीं दिख रहा है।अव्यवस्थाओं के कारण मेडिकल यूनिवर्सिटी की फीस से होने वाली आय भी कम होती जा रही है।