मध्‍य प्रदेश में भूमि का नामांतरण होगा आसान, विक्रेता के नहीं आने पर मानी जाएगी मौन स्वीकृति

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भूमि के नामांतरण की जटिल प्रक्रिया को आसान बनाया जा रहा है। जमीन बेचकर नामांतरण कराने में रुचि नहीं दिखाने वाले विक्रेताओं की वजह से परेशान होने वाले क्रेताओं को राहत देने और लंबित मामलों को तेजी से निपटाने के लिए अब सरकार ने नई व्यवस्था बनाई है।

इसके तहत राजस्व न्यायालय से नोटिस तामील होने के बाद यदि विक्रेता नामांतरण के लिए उपस्थित नहीं होता है और आपत्ति भी दर्ज नहीं कराता है तो इसे उसकी मौन स्वीकृति माना जाएगा। इसके आधार पर न्यायालय नामांतरण संबंधी आदेश पारित कर सकेंगे। इसी तरह भूमि स्वामी की मृत्यु होने पर भूमि के नामांतरण के लिए वारिसों और सह-खातेदारों की अनुपस्थिति से भी प्रकरण लंबित नहीं रहेंगे।

नोटिस जारी करने के बाद यदि आपत्ति न्यायालय को प्राप्त नहीं होती है तो नामांतरण आदेश पारित किए जाएंगे। दरअसल, राजस्व न्यायालय में ढाई लाख से ज्यादा नामांतरण के प्रकरण लंबित हैं। राजस्व विभाग ने जब इनकी समीक्षा की तो यह बात सामने आई कि भूमि बेचने के बाद विक्रेता नामांतरण कराने में कोई रुचि नहीं दिखाते है

बार-बार नोटिस जारी करने के बाद भी वे नियत तारीख को न्यायालय में उपस्थित नहीं होते हैं। इससे जहां प्रकरण लंबित रह जाते हैं वहीं क्रेता (खरीदार) भी परेशान होते हैं। जबकि नियमों में प्रविधान है कि ऐसे मामलों में नोटिस देने के बाद यदि विक्रेता उपस्थित नहीं होता है और कोई आपत्ति भी दर्ज नहीं कराता है तो फिर विक्रेता के पक्ष में नामांतरण कर दिया जाना चाहिए। सभी कलेक्टरों को विभाग ने निर्देश दिए हैं कि ऐसे मामलों में विक्रेता की मौन स्वीकृति मानते हुए उपलब्ध तथ्यों और गुण-दोष के आधार पर आदेश पारित किए जा सकते हैं।

इसी तरह भूमि स्वामी यदि जीवित रहते हुए खातों का विभाजन या नामांकन नहीं करा पाता है और किसी को कोई आपत्ति भी नहीं होती है तो ऐसे मामलों में नामांतरण किया जा सकता है। विधिवत उद्घोषणा और पक्षकारों को सूचना पत्र तामील होने के बाद भी यदि वे न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होते हैं तो आवेदक के पक्ष में आदेश जारी किए जा सकते हैं। यदि कोई पक्षकार आपत्ति उठाता है तो तहसीलदार उस पर विचार करके प्रकरण का निराकरण करेंगे।

आयुक्त भू-अभिलेख ज्ञानेश्वर पाटिल ने बताया कि आमतौर पर भूमि विक्रय करने के बाद विक्रेता नामांतरण कराने में रूचि नहीं दिखाते हैं। इससे अनावश्यक प्रकरण लंबित रहते हैं। जबकि, शासन की मंशा यह है कि अविवादित भूमि के नामांतरण में विलंब नहीं होना चाहिए। इसके मद्देनजर सभी कलेक्टरों को नामांतरण के संबंध में स्थिति स्पष्ट की गई है कि वे विक्रेता के न्यायालय के समक्ष उपस्थित न होने पर तय प्रक्रिया को अपनाकर नामांतरण कर सकते हैं।

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