जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आने वाले हैं और सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि कौन बाजी मारेगा। एग्जिट पोल के नतीजे नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को आगे बता रहे हैं, लेकिन साथ ही यह भी अनुमान लगा रहे हैं कि पीडीपी सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हालांकि पिछले कुछ समय से एग्जिट पोल के नतीजे चुनावी नतीजों की सही भविष्यवाणी करने में असफल रहे हैं, इसलिए इन नतीजों को पूरी तरह से सच मान लेना जल्दबाजी होगी। लगभग एक दशक बाद 18 सितंबर से 1 अक्टूबर, 2024 के बीच जम्मू कश्मीर में फिर से चुनाव हुए।
इनके लिए नतीजे क्या मायने रखते हैं
ये चुनाव राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे। कई सालों से जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवारों के प्रभुत्व वाले क्षेत्रीय दलों के इर्द-गिर्द घूमता रहा है तो वहीं बीजेपी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियां भी अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करती रही हैं। जैसे-जैसे जम्मू-कश्मीर चुनाव नतीजों का दिन करीब आ रहा है राजनीतिक विश्लेषक इस बात का बारीकी से विश्लेषण कर रहे हैं कि परिणाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, NC के उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की इल्तिजा मुफ्ती जैसी प्रमुख हस्तियों के लिए नतीजे क्या मायने रखते हैं।
पीएम मोदी के सामने कैसी चुनौती
प्रधानमंत्री मोदी के लिए जम्मू-कश्मीर चुनाव एक चुनौती और एक अवसर दोनों हैं। 2019 में बीजेपी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करना एक ऐतिहासिक क्षण था जिसने राज्य के विशेष दर्जे को बदल दिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया। यह कदम बीजेपी के लिए चर्चा का एक प्रमुख विषय रहा है, जिसने इसे राष्ट्रीय एकीकरण और सुरक्षा की दिशा में एक कदम के रूप में चित्रित किया है। चुनाव परिणाम इस बात की परीक्षा होंगे कि जम्मू-कश्मीर के लोग भाजपा के विकास और सुरक्षा के दावे को स्वीकार करते हैं या स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय बयानबाजी पर भारी पड़ते हैं।
बीजपी का मजबूत प्रदर्शन मोदी की रणनीति को मान्यता देगा और एक ऐसे नेता के रूप में उनकी छवि को मजबूत करेगा जो वादों को पूरा करता है। दूसरी ओर खराब परिणाम आलोचकों को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उर्जा दे सकता है, जो तर्क देते हैं कि इस कदम से जम्मू-कश्मीर के लोगों को वादे के अनुसार लाभ नहीं हुआ है।