एमबीबीएस की पढ़ाई करने मंडला जिले से दो छात्र गए हुए थे। इनमें से एक छात्र युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व ही मंडला लौट चुका था। तो दूसरा छात्र भी सेफ जोन पड़ौसी देश के बार्डर रोमानिया में जा चुका था। अब वह छात्र भी आपरेशन गंगा योजना के तहत शीघ्र ही भारत आने वाला है। यह मंडला जिला के लिए बड़ी ही राहत वाली खबर है। सरकार की एडवायजरी जारी होते ही उनके स्वजन चिंतित रहे और अपने बेटों को शीघ्र घर वापसी के लिए समय पर राह दिखाई। जिसके चलते उनका आना संभव हो पा रहा है।
बेटा नाजेंद्र यूक्रेन के टर्नोपिल यूनिवर्सिटी में रहकर पढ़ाई कर रहा था। जहां से वह किराए की गाड़ी टैक्सी कर रोमानिया बार्डर की ओर चला गया। जिससे उसे कुछ दिन पहले ही रोमानिया देश में जाने का मौका मिल गया। जहां अब वह बुखारेस्ट में है। पिता ने बताया कि अब वह पूरी तरह सुरक्षित है। आपरेशन गंगा मिशन के तहत वह जल्द ही भारत आ सकता है। एक प्लाइट में एक बार में 200 से 250 लोग ही आ रहे हैं।
तीन बजे के लगभग हुई बात : पिता मुकुंद राव डोंगर ने बताया कि बेटा अक्टूबर 2021 में एमबीबीएस की पढ़ाई करने गया था। टर्नोओपिल यूनिवर्सिटी में प्रथम वर्ष का छात्र था। उससे बुधवार दोपहर तीन बजे के लगभग बात हुई है। वह पूरी तरह सुरक्षित महसूस कर रहा है। पहले जब हमें टीवी के माध्यम से यूक्रेन में युद्ध की संभावना बनी तो हम केवल टीवी के सामने ही लगे रहे। दिल भी बैठा जा रहा था। मैं इस समय छिंदवाड़ा जिला में सिंचाई विभाग में कार्यरत हूं। पत्नी गांव में ही है। जिससे चिंता बनी हुई थी। एक ही बेटा है। भारत सरकार के सहयोग से जल्द ही बेटा आ जाएगा।
युद्ध भड़कने के तीन दिन पहले ही भारत आ चुका था निखिल : मंडला जिला मुख्यालय के निकट कटरा ग्राम पंचायत अंतर्गत सुभद्रा नगर कालोनी निवासी निखिल खरे 26 वर्ष भी यूक्रेन में रहकर पढ़ाई कर रहा था। वह युद्ध भड़कने के करीब तीन दिन पहले भारत और अपने घर लौट चुका था। इस बात की जानकारी किसी को भी नहीं थी। एक दिन पूर्व से ही जब भोपाल और एंबेंसी आदि से फोन उसके पास आने लगे। जिला, पुलिस प्रशासन से भी संपर्क किया गया। तब कहीं जाकर उसके मंडला आ जाने की जानकारी लोगों को लग सकी। निखिल खरे यूक्रेन में पूर्वी क्षेत्र में रहकर सुमि यूनिवर्सिटी में रहकर पढ़ाई कर रहा था। यह क्षेत्र रूस की बार्डर से लगा हुआ है। बड़े भाई डा. अविनाश खरे जो कि जिला अस्पताल में पदस्थ हैं और उनकी मांं काफी चिंतित थे। युद्ध की संभावना बन रही थी। इसे देखते हुए उन्होंने टिकट करवा दी। जिससे निखिल पहले ही आ गया। निखिल ने बताया कि मै तो आ गया हूं। लेकिन मेरे दोस्त फंस गए हैं। जिसका मुझे दुख है। हमारी यूनिवर्सिटी से कोई भी कंट्री की बार्डर नजदीक नहीं है। करीब एक हजार किमी का रास्ता तय करना होगा। जो कि अब संभव नहीं है। वहां रेल लाइन और सड़क ध्वस्त हो चुकी है। अब तो वहां से निकलना बहुत कठिन है। जब तक कोई शांति व्यवस्था नहीं बन जाती।
शारजाह होते हुए आया : निखिल ने बताया कि वह तो 16 फरवरी को ही रवाना हो चुके थे। यूक्रेन की राजधानी कीव से फ्लाइट में शारजाह पहुंचे और वहां से वे दिल्ली आ गए। जिसके बाद वे 19 फरवरी को मंडला आ गए थे। जानकारी लगने पर पुलिस अधिकारी, कर्मचारी भी पहुंचे। वहीं पुलिस अधीक्षक कार्यालय भी उन्हें बुलाया गया। जहां वे पुलिस अधीक्षक यशपाल सिंह राजपूत से मिले और उनसे चर्चा की। वहां के हालात के बारे में बताया। निखिल के भाई और मां सुरक्षित वापसी हो जाने पर खुश तो थी। पर उनके दोस्तों के न आने पर अफसोस भी है।