रक्षाबंधन का पर्व करीब आ चुका है। ऐसे में राजधानी के बाजारों में कई तरह की आकर्षक राखियों की दुकानें भी सज गई है। बीते दो सालों से कोरोना वायरस के चलते रक्षाबंधन का पर्व भी ठीक नहीं मनाया जा सका लेकिन इस बार लोग कोई कसर नहीं छोड चाह रहे हैं।राजधानी के गौहर महल में चल रहे सावन मेले में हस्तनिर्मित राखियों की श्रृंखला तो मौजूद है ही, लेकिन इनमें भी खास है कोरे कपड़ों से बनी राखियां, जिन्हें भोपाल की ही फैशन डिजाइनर पूजा वर्मा ने पहली बार आकार दिया है। पूजा ने बताया कि कोरे कपड़े को पवित्र माना गया है। इसीलिए उन्होंने इससे राखियां बनाने के बारे में सोचा। उनके पास काटन और लट्ठे के कपड़े में बाग, इम्ब्राइडरी और इंडिगो प्रिंट की राखियां मौजूद हैं, जिन्हें खूबसूरत मोतियों से सजाया गया है। इनकी कीमत 50 रुपए से लेकर ढाई सौ रुपये है। पूजा के स्टाल में कपड़ों की ज्वेलरी और हैंड प्रिंट स्टाल भी है। इसी प्रकार ग्वालियर से आए बृजकिशोर सूत्रकार काटन का तौलिया लेकर आए हैं, जिसे डाक्टरों द्वारा पसंद किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि हस्तनिर्मित यह तौलिया धोने के बाद 10 से 15 मिनट में सूख जाता है। एक कारीगर एक दिन में चार से पांच तौलिया बना लेता है। इसकी कीमत डेढ़ सौ रुपए है। ड्रीम केचर लगाएं, सुहाने सपनों में खो जाएं : मेले में बोहो बिंदी, ग्वालियर के स्टाल पर कपड़ों से बने सजावटी और घरेलू उपयोग के आइटम खास हैं। डिजाइन कृष्णा श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने अपने शौक का व्यवसाय का रूप दिया है। उनके द्वारा निर्मित उत्पाद यूरोप की संस्कृति पर आधारित हैं। इनमें मेकरेगे कपड़े से बने प्लांट हैंगिंग, ड्रीम केचर, ट्री आफ लाइफ और बैग आदि शामिल हैं। यूरोप में ऐसा माना जाता है कि बेडरूम में ड्रीम केचर लगाने से सपने अच्छे आते हैं, वहीं ट्री आफ लाइफ आगे बढ़ने का संदेश देता है। कृष्णा के पास काटन का नेकलेस भी है। मध्य प्रदेश हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम की ओर से आयोजित सावन मेला आठ अगस्त तक चलेगा। मेले में करीब 60 शिल्पकार प्रदेश के उत्कृष्ट उत्पादन चंदेरी, महेश्वर, वारासिवनी, सौसर के सिल्क काटन में कती बुनी साड़ियां एवं ड्रेस मटेरियल लेकर उपस्थित हुए हैं। बाग, बटिक, दाबू ब्लाक प्रिंट के साथ ही टीकमगढ़ की बेल मेटल और जनजातीय ज्वेलरी, भोपाल की जरी जरदोजी, बुदनी के खिलौने यहां मौजूद हैं। मेहंदी के रंग, झूला और संगीतिक कार्यक्रम मेले की शोभा बढ़ा रहे हैं।