दक्षिण सामान्य वन परिक्षेत्र कार्यालय वारासिवनी में 19 फरवरी को पूर्व श्रमिकों के द्वारा वन परिक्षेत्र वारासिवनी रेंजर के नाम का ज्ञापन सौप कर माननीय श्रम न्यायालय जबलपुर तथा आपके द्वारा पेश की गई याचिका में दिए गए आदेश तथा श्रम न्यायालय के द्वारा दिए गए अवार्ड एवं निर्णय के अनुसार काम पर पुनर्स्थापित करने की मांग की गई। वही न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश का पालन न कर न्यायालय के आदेश की अवहेलना का वन विभाग पर आरोपी लगाया गया। ज्ञापन में उल्लेखित है कि उक्त 18 श्रमिक आवेदक पूर्व में वन विभाग वारासिवनी की नर्सरी में श्रमिक के पद पर कार्यरत थे जीने वर्ष 1988 में तत्कालीन वन परिक्षेत्र वारासिवनी के अधिकारी के द्वारा नोटिस दिए बगैर कम से बंद कर दिया गया था। उक्त विषय को लेकर विरोध स्वरूप श्रम अधिकारी बालाघाट के सामने यह प्रकरण रखा गया जिसके द्वारा विवाद को राज्य शासन को न्याय दिलाने हेतु रेफर कर दिया गया था जिसमें श्रम न्यायालय जबलपुर द्वारा सुनवाई शुरू कर उक्त केस का अवार्ड पारित किया गया। जिसमें 19 अप्रैल 1991 को अपने घोषित अवार्ड में श्रमिकों के पक्ष में आदेश दिया गया कि उन सभी को पुनर्स्थापित कर पिछला वेतन का भुगतान किया जाये। जिसका पालन न होने पर 1992 में उच्च न्यायालय जबलपुर में याचिका प्रस्तुत की गई जिस पर 16 दिसंबर 2004 को श्रम न्यायालय जबलपुर के आदेश को उचित मानकर पुनर्विचार करने वापस भेज दिया गया जिसमें 2 दिसंबर 2008 को अवार्ड घोषित किया गया। जिसमें पिछला वेतन देने के आदेश को संशोधित कर 25 प्रतिशत वेतन पाने की पात्रता प्रथम पक्ष श्रमिकों रहेगी तथा इस आदेश के तहत 90 दिवस में वेतन अदा करने का आदेश दिया गया। इसमें वर्ष 1991 के निर्णय को लेकर वन विभाग ने आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी जिसमें 2008 के निर्णय में संशोधन हुआ इसके बाद उच्च न्यायालय जबलपुर मैं मध्य प्रदेश शासन एवं वन विभाग की पिटीशन शासन व अन्य बनाम पुरुषोत्तम व अन्य प्रस्तुत किया गया था। जिसमें उच्च न्यायालय जबलपुर के द्वारा 23 जनवरी 2020 को संशोधित आदेश को निरस्त करते हुए औद्योगिक न्यायालय के आदेशों को यथावत रखा तथा अपने आदेश में यह भी उल्लेखित किया गया कि उत्तरवादी गणों की सेवा पुन स्थापित करें तथा उन्हें उनका वेतन अभिलंब प्रदान करें। जिसको लेकर लगातार सभी के द्वारा वन विभाग और मंत्रालय के चक्कर लगाए जा रहे हैं परंतु कोई उच्च न्यायालय के आदेश पर कार्यवाही ना करते हुए आदेश का उल्लंघन वन विभाग के द्वारा किया जा रहा है। हम यही चाहते हैं कि श्रम न्यायालय जबलपुर तथा माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर की पिटीशन शासन व अन्य बनाम पुरुषोत्तम व अन्य में पारित आदेश 23 जनवरी 2020 के परिपेक्ष में सभी आवेदक गणों को उक्त आदेश के अनुरूप काम पर पुनर्स्थापित किया जाये। इस अवसर पर पुरुषोत्तम डोंगरे, सुशीला बाई, देवकन बाई मरार, सकीना बाई शेख, कांताबाई लोधी, सुखलाल बिसेन, भंडारी लाल मरार, इंद्र कला बाई, सहित अन्य लोग मौजूद रहे।
पुरुषोत्तम डोंगरे ने पदमेंश से चर्चा में बताया कि हम सन 1988 के पहले से वन विभाग की नर्सरी में काम करते थे तो हमें 1988 में बंद कर दिया गया था। इसके संबंध में हमने आवेदन वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को दिए थे वहीं हाई कोर्ट में भी केस दायर किया था जिसमें हम जीत गए हैं। आदेश हमारे पक्ष में हो गया है और यह एक बार नहीं वर्ष 1991 2006 2007 2020 चार बार न्यायालय के द्वारा हमारे पक्ष में निर्णय दिया गया है। परंतु वन विभाग के द्वारा इन निर्णय का पालन नहीं किया जा रहा है इसमें यही निर्णय हुआ है कि हमें काम पर वापस लेकर बैठी मजदूरी का भुगतान किया जाये। जिसके लिए हम आज ज्ञापन देने आए थे तो अधिकारी कहते हैं कि वरिष्ठ अधिकारियों के पास जाओ 35 वर्ष से हम भटक रहे हैं और हमारा जो कोर्ट ने आदेश जारी किया है उसका पालन नहीं हो रहा है।
इंद्रकला बाई ने बताया कि मैं शगुन बाई की बेटी हूं मेरी मां की मृत्यु हो चुकी है कर्मचारी के रूप में वह काम करती थी जिनका वारसान हम बना चुके हैं। हमारे पक्ष में निर्णय हैं मरने वालों के वारसान लेकर अनुकंपा नियुक्ति देने और रुका हुआ वेतन देने के लिए न्यायालय के द्वारा आदेश कर दिया गया है। परंतु अधिकारियों के द्वारा न्यायालय के आदेश की अवहेलना की जा रही है हम 18 लोग हैं जो लगातार शासन से गुहार लगा रहे हैं इसमें सात लोगों की मृत्यु हो चुकी है। परंतु अधिकारी कहते हैं हमने न्यायालय में अपना आवेदन दे दिया था कि इनको हम काम पर नहीं रख सकते हैं इस प्रकार से आदेश का उल्लंघन किया जा रहा है।