पाकिस्तान हाल के दिनों में पश्चिम एशिया में अपनी भूमिका को लेकर काफी ज्यादा व्यस्त दिख रहा है। दस दिनों के भीतर ही इस्लामाबाद में सऊदी के विदेश मंत्री और उप रक्षा मंत्री का दौरा हुआ। इसके बाद बाद ईरानी राष्ट्रपति पाकिस्तान आए। पाकिस्तान के लिए दोनों ही देश बेहद अहम हैं लेकिन दोनों के साथ बेहतर रिश्ते बनाकर रखना भी एक चुनौती है। ईरान और सऊदी अरब सिर्फ दो देश नहीं हैं बल्कि एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी भी हैं, जो पाकिस्तान को अपने दायरे में शामिल करने के लिए उत्सुक हैं। ऐसे में पाकिस्तान को दोनों को साधना चुनौती है। ईरान शिया तो सऊदी सुन्नी बहुल है और अभी तक पाकिस्तान सुन्नी गुट में ही रहा है।
प्रोफेसर आयशा सिद्दीकी ने द प्रिंट में अपने लेख में कहा है कि सऊदी और ईरान के नेताओं की यात्राओं को जिस तरह से संभाला गया वह पाकिस्तान की प्राथमिकताओं को दर्शाता है। सऊदी अरब के आगंतुकों का इंतजार इसलिए ज्यादा बेसब्री से किया जा रहा था, क्योंकि ये पाकिस्तान में सऊदी निवेश के लिए दरवाजे खोलने के लिए थी। सऊदी विदेश मंत्री पाकिस्तान में निवेश की संभावनाओं की समीक्षा करने और तलाशने के लिए आए थे और कुछ डील इस साल मई तक फाइनल हो सकती हैं। पाकिस्तान में कुछ प्रोजेक्ट में सऊदी की ओर से 1 बिलियन डॉलर का शुरुआती निवेश हो सकता है।
पाकिस्तान के लिए क्या हैं विकल्प
पाकिस्तान और सऊदी अरब खाड़ी के साथ दक्षिण एशिया के लिए अमेरिकी महत्व की बात करने वालों में शामिल हैं। कुछ मायनों में इस्लामाबाद-रियाद संबंध सिर्फ द्विपक्षीय नहीं बल्कि एक त्रिपक्षीय जुड़ाव भी है। इसमें पाकिस्तान अमेरिका के साथ बातचीत के लिए सऊदी अरब का इस्तेमाल करेगा। ऐसी भी संभावना है कि रियाद में अमेरिकी राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय परिसर खुलने से पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण के अवसर बढ़ सकते हैं। साफ है कि सऊदी अरब ना केवल पाकिस्तान के लिए धन का स्रोत है, बल्कि उसे पश्चिमी रणनीतिक गुट के करीब रखने का जरिया भी है। इसलिए जहां तक चीन का सवाल है, उसके लिए संतुलन बनाए रखना होगा।
चीन को कुछ फिलहाल सुरक्षा कारणों से पाकिस्तान में निवेश करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 2017 के बाद से चीनी कर्मचारियों के खिलाफ पाकिस्तान में हमले बढ़ गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि सऊदी अरब बलूचिस्तान समेत उन्हीं क्षेत्रों में निवेश करेगा, जहां चीनियों को गंभीर सुरक्षा खतरों का सामना करना पड़ रहा है। ये देखने वाली बात होगी कि इन क्षेत्रों में सऊदी की उपस्थिति के बाद क्या पाकिस्तान उन प्रस्तावित परियोजनाओं के लिए बेहतर सुरक्षा प्रदान करेगा। ये भी मुमकिन है कि सऊदी निवेश में चीनियों के साथ साझेदारी शामिल हो सकती है। सऊदी के मंत्रियों की यात्राएं एक ऐसे संबंध स्थापित करने के लिए थीं, जिसमें क्षेत्रीय सुरक्षा और पश्चिम एशिया मामले बातचीत का हिस्सा हों। दरअसल, खाड़ी देशों में चल रही अशांति को देखते हुए सऊदी अरब चाहेगा कि पाकिस्तान में ईरानी प्रभाव में किसी भी तरह की वृद्धि ना हो।