शीर्ष पद के आकांक्षी रानिल विक्रमसिंघे अंतत: श्रीलंका के राष्ट्रपति बन गए पर चुनौतियां कम नहीं

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श्रीलंका में राजनीतिक गतिरोध समाप्त हो गया और छह बार प्रधानमंत्री रहे राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे अंतत: राष्ट्रपति के शीर्ष पद पर पहुंच गए। उन्हें एक के बाद एक कई झटके लगे, लेकिन वह हमेशा ही असंभव लगने वाली हार से उबरने के प्रबंधन में जुट जाते। सवाल यह है कि क्या वह अपना काम पूरा करने के लिए जनता का समर्थन जुटा सकेंगे। हालांकि, आलोचक भी विक्रमसिंघे की दृढ़ता का सम्मान करते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में विक्रमसिंघे के मुख्य प्रतिद्वंद्वी का समर्थन करने वाले सांसद उदय गम्मनपिला ने कहा, ‘यदि आप टूट गए हैं और आपको लगता है कि आपको वह नहीं मिल रहा है जो आप चाहते हैं, तो बस रानिल विक्रमसिंघे की एक तस्वीर देखें।’
विक्रमसिंघे फिलहाल भोजन, ईंधन और दवा की कमी के संकट से जूझ रहे श्रीलंकाई लोगों के बीच अलोकप्रिय हैं। पिछले हफ्ते प्रदर्शनकारियों ने उनके निजी आवास को आग के हवाले कर दिया था। एक अमीर, राजनीतिक रूप से सक्रिय परिवार में जन्मे, विक्रमसिंघे ने एक वकील के रूप में प्रशिक्षण लिया और गुरुवार को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से 45 साल पहले पहली बार संसद के लिए चुने गए थे।
उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में वह श्रीलंका के गंभीर आर्थिक, मानवीय और राजनीतिक संकट को दूर करने के लिए एक प्रमुख नीतिगत भाषण देंगे जिसमें वह श्रीलंका के आर्थिक, राजनीतिक और मानवीय संकट को दूर करने की योजना का जिक्र करेंगे। संसद में बुधवार के गुप्त मतदान का विजेता घोषित किए जाने के ठीक बाद बोलते हुए विक्रमसिंघे ने साथी सांसदों से राष्ट्र को बचाने के लिए एकजुट होने का आग्रह किया।
उन्होंने संसद से कहा, ‘लोग हमसे पुरानी राजनीति की उम्मीद नहीं कर रहे हैं, वे हमसे मिलकर काम करने की उम्मीद करते हैं।’ यह स्पष्ट नहीं है कि बहुप्रतीक्षित राष्ट्रपति पद पाने के बाद विक्रमसिंघे अपनी शक्तियों पर अंकुश लगाने वाले सुधारों का समर्थन करेंगे या नहीं। उन्हें अहम पल में पहल करने के लिए जाना जाता है। वर्ष 2002 में उन्होंने जातीय तमिल अल्पसंख्यक के लिए एक स्वतंत्र राज्य बनाने के लिए लड़ रहे विद्रोहियों के साथ नॉर्वे की मध्यस्थता में हुए शांति समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए, एक साल से जारी गृहयुद्ध को समाप्त करने की कोशिश की।
युद्धविराम से विक्रमसिंघे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा मिली। इसके अलावा इससे ध्वस्त होने की कगार पर पहुंच चुकी अर्थव्यवस्था को उबारने में भी मदद मिली। लेकिन इस संधि ने सिंहली बौद्ध राष्ट्रवादियों को नाराज कर दिया, जिन्होंने इसे विश्वासघात के रूप में देखा। तत्कालीन राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा ने विक्रमसिंघे और उनके मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर दिया और चुनाव का आह्वान किया, जिसमें उनकी पार्टी हार गई।
विक्रमसिंघे अगले साल राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़े, लेकिन राष्ट्रवादी महिंदा राजपक्षे से हार गए। वर्ष 2009 में राजपक्षे ने तमिल टाइगर्स को हराया और बहुसंख्यक सिंहली बौद्धों की नजर में राष्ट्रीय नायक बन गए। तब से अधिकतर वर्षों के दौरान, राजपक्षे परिवार ने श्रीलंका की राजनीति पर अपना दबदबा कायम रखा है। विक्रमसिंघे अपनी निजी जिंदगी को छुपा कर रखते हैं। उन्होंने मैत्री विक्रमसिंघे से शादी की है, जो एक प्रोफेसर हैं।

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