क्या मनुष्य ब्रह्मांड में अकेला है या किसी अन्य ग्रह पर भी मानव की तरह कोई अन्य जीव निवास करता है? यह एक ऐसा प्रश्न है, जिस पर सदियों से विचार किया जा रहा है। इस संबंध में अनगिनत अध्ययन और कल्पनाएं की गई हैं। अब हम इस हकीकत का पता लगाने के करीब पहुंच रहे हैं। अब जबकि जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (जेडब्ल्यूएसटी) ने काम करना शुरू कर दिया है, तो हम एक दिन इसका जवाब देने की दिशा में एक बड़ी छलांग लगा सकते हैं। जेडब्ल्यूएसटी के चार मुख्य उद्देश्यों में से एक एक्सोप्लैनेट का अध्ययन करना है- ऐसे ग्रह जो हमारे सौर मंडल के बाहर हैं। इसके अलावा यह निर्धारित करना है कि उनका वायुमंडल किन गैसों से बना है।
अब भूगर्भीय समय में पृथ्वी पर ऑक्सीजन की विविधता में हमारे नए शोध ने सुराग दिया है कि वास्तव में अध्ययन का उद्देश्य क्या पता लगाना है। अन्य ग्रहों पर जीवन कैसे, कब और क्यों विकसित हो सकता है, इसे समझने की कोशिश करना। एकमात्र ग्रह जिसके बारे में वर्तमान में हमें यह समझ में आता है कि उस पर जीवन है, वह पृथ्वी है। हमारे अपने ग्रह के जटिल विकासवादी इतिहास को समझने से हमें उन ग्रहों की खोज करने में मदद मिलती है, जहां जीवन की संभावना हो सकती है।
हम जानते हैं कि प्राणियों को जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, हालांकि स्पंज जैसे कुछ ऐसे जीव भी हैं, जिन्हें दूसरों की तुलना में कम ऑक्सीजन की आवश्यकता है। ऑक्सीजन आज आसानी से उपलब्ध है और यह हमारे वायुमंडल का 21 प्रतिशत है, लेकिन यह भी सच है कि पृथ्वी पर हमेशा ऐसी स्थिति नहीं रही। यदि हम अपने अतीत की गहराई में लगभग 45 करोड़ वर्ष पीछे जाते हैं, तो हमें पता चलेगा कि उस समय पृथ्वी पर मानव के जीवित रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं थी।
जबकि पहले पृथ्वी एक ऐसा ग्रह था, जो अनिवार्य रूप से वायुमंडल और महासागरों में ऑक्सीजन से रहित था। पृथ्वी पर ऑक्सीजन के स्तर में अभूतपूर्व बदलाव करने वाली घटना लगभग 42 करोड़ वर्ष पहले हुई थी और इसे ‘पैलियोज़ोइक ऑक्सीजनेशन इवेंट’ कहा जाता है, जिसने वायुमंडलीय ऑक्सीजन में वर्तमान स्तर तक वृद्धि कर दी।