सरकारी शिक्षिका की तरह की नौकरी, सेवा निवृत्ति पर फूटी कौड़ी का भी नहीं मिली

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अपने जीवन के 23 साल शिक्षा विभाग को समर्पित करने के बाद भी सेवानिवृत्त एक शिक्षिका को पेंशन के नाम पर विभाग से फूटी कौड़ी भी नसीब नहीं हुई। वहीं बे औलाद होने के चलते उन्हें बच्चों का सहारा भी नहीं है।अब ना उन्हें किसी प्रकार का सम्मान मिला है और ना ही उन्हें पेंशन दी जा रही है। वर्तमान समय में शिक्षिका जिंदगी और मौत के बीच जंग कर रही है जिसे मदद की दरकार है ।जहा 23 साल नौकरी करने के बाद भी वह स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रही है यह कहानी है।सेवानिवृत्त शिक्षिका गर्रा निवासी मीना चौबे की। पैरालिसिस की गंभीर बीमारी होने से वह चल फिर नहीं पा रही है।वही उनकी मदद करने वाला भी कोई नजर नहीं आ रहा है। लेंडेझरी संकुल के प्राथमिक शाला गर्रा में पदस्थ रहीं मीना चौबे का जीवन कई मायनों में अहम रहा है। आज शिक्षक दिवस पर उन्होंने पदमेश न्यूज़ से विशेष चर्चा में जानकारी सांझा की। तो वही उनके पति ने उनकी दैनिक स्थिति का हवाला देते हुए पेंशन न मिलने के चलते उन्हें होने वाली आर्थिक व मानसिक परेशानियों से अवगत कराया है।

शासकीय सेवा का नहीं मिला लाभ
मीना चौबे के अनुसार उन्होंने एक सरकारी शिक्षक की भांति 23 साल शिक्षा विभाग में 500 रु के मामूली मानदेय में सेवा की। 62 वर्ष की उम्र में उन्हें एक सरकारी कर्मचारी की तरह ही सेवा निवृत्त भी किया गया। लेकिन कर्मचारी की भांति सेनि पर मिलने वाले लाभ व राशि प्रदान नहीं की गई है। अब मीना चौबे के समक्ष स्वयं और पति के पालन पोषण की व्यवस्था करने में भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। मीना चौबे के अनुसार 23 वर्ष पूरी इमानदारी से सेवा देने के बाद आज वे अपने आप को ठगा सा महसूस कर रही है। स्कूल में शिक्षण कार्य के अलावा यदि वे कुछ और करतीं तो उन्हें ऐसे दिन नहीं देखने पड़ते।

प्राथमिक स्कूल की रखी नींव
मीना चौबे के पति राजेन्द्र प्रसाद चौबे ने बताया कि मीना चौबे की प्रथम नियुक्ति 500 रुपए के अल्प मानदेय में शिक्षा गारंटी शाला गुरूजी के पद पर 27 जुलाई 1998 में हुई थी। स्वयं से बच्चों को एकत्रित कर ईजीएस शाला गर्रा जो कि अब प्राथमिक स्कूल गर्रा कर दिया गया है की नींव भी मीना चौबे ने रखी और स्कूल की शुरूआत की। गुरूजी के पद पर लगातार 18 वर्ष सेवा देने के दौरान सरकारी तौर पर मीना ने कई आवासीय व गैर आवासी प्रशिक्षण भी प्राप्त किए। इस दौरान 2015 में प्रदेश सरकार ने गुरूजी के वेतन में पदोन्नती करते हुए वेतन 5000 हजार रुपए कर गुरूजियों को संविदा शाला शिक्षक वर्ग -3 कर दिया। वहीं हर तीन वर्ष में 15 प्रतिशत की वृद्धि के नियम के तहत उनका वेतन 5700 रुपए हो गया। इसके बाद मीना चौबे के 62 वर्ष की आयु पूर्ण करने पर अप्रैल 2021 में उन्हें बिना किसी सूचना दिए सेवा निवृत्त कर दिया गया। वर्तमान में उन्हें किसी तरह की पेंशन व आर्थिक मदद नहीं मिल रही है।

शिक्षक की भांति मिले सम्मान
मीना ने बताया कि अल्प मानदेय में शिक्षिका का कार्य करने के बावजूद ना उनका गरीबी रेखा का कार्ड नही बना, ना ही उन्होंने शासन की अन्य गरीबों के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ लिया। सम्मान से जीवन व्यतीत करने के बाद अब उनके सामने आर्थिक परेशानियां आड़े आती है। मीना के अनुसार भले ही उन्हें पेंशन या अन्य आर्थिक मदद न मिल तो गम नहीं। लेकिन विशेष मौकों पर मान सम्मान की आस उन्हें रहती है। मीना के अनुसार पैरालिसिस होने के बाद उन्हें नहीं पता कि वे कितने दिन और जी पाएंगे। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को याद किया जाए इसमें ही वे खुश है।

पढाने के अलावा अगर कोई और काम करते तो आज यह दिन देखना नहीं पड़ता- राजेन्द्र चौबे,
इस पूरे मामले को लेकर की गई चर्चा के दौरान सेवानिवृत शिक्षिका मीना के पति राजेंद्र चौबे ने बताया कि एक मजदूर, हमाल या चपरासी भी शासन के लिए इतने वर्ष सेवा देता है तो बुढ़ापे के समय उसे एक मुस्त राशि, प्रोविडेंट फंड दिया जाता है। लेकिन मीना को कुछ नहीं मिल पाया है। इस बात को उसे कोई मलाल भी नहीं है। हॉ लेकिन एक शिक्षक के योगदान और कार्य को याद रखा जाना चाहिए यहीं उसका सबसे बड़ा सम्मान होता है। उन्होंने बताया कि 23 साल शिक्षा विभाग में अपनी सेवा देने के बाद भी आज तक विभाग द्वारा उन्हें पेंशन की सुविधा नहीं दी गई है। हमारे कोई बच्चे नहीं है और ना ही कोई कमाने वाला है ऐसे हालात में हमें जिंदगी गुजारने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन फिर भी हम जिंदगी गुजर रहे हैं। हम चाहते हैं कि हमें भी कोई मान सम्मान मिले, शिक्षक दिवस के खास मौको पर हमारी भी कोई पूछ परख हो।उन्होंने बताया कि यदि उनकी पत्नी मीना शिक्षिका नहीं होती और पढाने के अलावा कोई और काम करती तो शायद आज हमें यह दिन देखना नहीं पड़ता।

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