सुदामा ने श्रीकृष्ण रचित सहस्रनामावली से महाकाल को अर्पित किए थे बिल्व पत्र

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राजेश वर्मा, उज्जैन, Sawan Somwar। भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन योगेश्वर श्रीकृष्ण की शिक्षा नगरी भी है। यहीं श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय मित्र सुदामा को महाकाल मंदिर में श्रावण सोमवार के दिन भगवान शिव को बिल्व पत्र अर्पित करने का महत्व बताया था। कृष्ण ने यहां महाकाल सहस्रनामावली की रचना भी की थी। योगेश्वर द्वारा बताए गए इन्हीं एक हजार नामों से सुदामा ने भगवान महाकाल को बिल्प पत्र अर्पित किए थे। स्कंदपुराण के अवंतिखंड में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया था कि श्रावण मास में सोमवार के दिन भगवान शिव को बिल्व पत्र अर्पित करने से भक्तों के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। शिव को समर्पित किया गया एक बेल पत्र मनुष्य को कोरोड़ों हाथियों का दान, सैकड़ों यज्ञ तथा लाखों कन्याओं का विवाह कराने के समान पुण्य फल प्रदान करता है। विभिन्न योनियों में भटक रहे भक्त की 71 पीढ़ी के पितृ मुक्त होकर शिव लोक को प्राप्त करते हैं।

पुस्तक का हो रहा प्रकाशन : महाकालेश्वर वैदिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान द्वारा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रचित महाकाल सहस्रनामावली पर पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है। संस्थान के निदेशक डा.पीयूष त्रिपाठी ने बताया भगवान ने महाकाल सहस्रानामावली की अद्भुत रचना की है। इसमें हिंदी वर्णमाला की बारहखड़ी के प्रत्येक अक्षर से भगवान महाकाल का नाम शुरू होता है। इन एक हजार नामों में संपूर्ण जगत समाया है।

शिव को इसलिए प्रिय है श्रावण : पौराणिक आख्यानों में भगवान शिव ने स्वयं श्रावण का महत्व बताया है। समुद्र मंथन के समय शिव ने हलाहल विष का पान किया था। विष की उष्णता के शमन के लिए शिव के जलाभिषेक का महत्व है। श्रावण वर्षा ऋतु का महीना है, इसलिए शिव श्रावण में प्रसन्ना रहते हैं। इस माह में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा आती है। श्रावण के महात्म्य को श्रवण करने से समस्त प्रकार की सिद्धियां सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।

बिल्व वृक्ष को लेकर मान्यताएं

– बिल्व वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।

– सुबह व शाम बिल्व वृक्ष के दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है।

– बिल्व वृक्ष में जल अर्पित करने से पितृ तृप्त होते हैं।

– बिल्व के साथ सफेद आंकड़े का वृक्ष लगाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

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