सोयाबीन की खली के आयात करने का सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने किया विरोध

0

देश में खाद्य तेलों का आयात सालों से हो ही रहा है। अब पॉल्ट्री उद्योग सोयाबीन की खली का भी आयात करना चाहते हैं। इसके लिए इन्होंने केंद्र सरकार से अनुमति मांगी है। लेकिन सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने इसका विरोध किया है। इनका कहना है कि देश में सोयाबीन की खली का पर्याप्त उत्पादन होता है। यदि विदशों से इसका आयात खोला गया, तब इससे यहां के सोयाबीन किसानों की आमदनी घट जाएगी। सोपा के कार्यकारी निदेशक डी एन पाठक का कहना है, कि पॉल्ट्री उद्योग ने एक बार फिर से सोयामील या सोयाबीन की खली के आयात के लिए सरकार से अनुमति मांगी है। ये अंतरराष्ट्रीय बाजार से सस्ती कीमत पर सोया खली का आयात करना चाहते हैं। यदि ऐसा हुआ फिर यहां के सोयाबीन किसानों को उपज का कम दाम मिलेगा।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दावीश जैन ने केंद्रीय पशुपालन सचिव को पत्र भेज कर कहा है कि जीएम सोयाबीन के आयात की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उनका कहना है कि अप्राकृतिक ढंग से तैयार की गई कोई भी चीज हानिकारक होती है। जैनेटिकली मोडिफाइड फसल अप्राकृतिक रूप से तैयार किया जाता है। इसकारण इसका भारतीय पॉल्ट्री उद्योग पर अवश्य दुष्प्रभाव होगा। पाठक का कहना है कि भारतीय पॉल्ट्री उद्योग की हर साल की मांग 58 लाख टन सोया खली की है। इससे बहुत ज्यादा उत्पादन भारत में होता है। इसकारण विदेशी सोया खली के आयात से घरेलू उद्योग बर्बाद हो जाएगा। यहां के किसानों को भी कम दाम मिलेगा। उल्लेखनीय है कि भारत में हर साल करीब 130 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन होता है। सोयाबीन को पेड़ने पर 81 फीसदी खली निकलता है। इस खली में से करीब 10 लाख टन का उपयोग सोया चंक, नगेट, आटा आदि बनाने में होता है। तब भी पॉल्ट्री फूड के लिए 60 लाख टन से भी ज्यादा खली बचता है।
पाठक के मुताबिक घरेलू सोयाखली का भाव करीब 850 डॉलर प्रति टन है जबकि अर्जेंटीना में इसका भाव 530 डॉलर है। यदि इस पर 100 डॉलर का ढुलाई खर्च भी लगा दिया जाए तो भी इसकी कीमत 630 डॉलर प्रति टन ही बैठता है। इसलिए भारतीय पॉल्ट्री उद्योग आयातित सोया खली चाहते हैं। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि आयातित सोया खली जीएम फसल से तैयार है जबकि भारत में जीएसम सोयाबीन की खेती नहीं होती।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here