(उमेश बागरेचा)
भाजपा वाले कांग्रेस वालों की बहुत उड़ाते थे कि देखो-देखो कांग्रेस कैसे अपने विधायकों को बाहर ले जाकर होटलों में रख रही है। ऐसा नहीं कि भाजपा यह नहीं करती, राजनीति में पक्ष विपक्ष दोनों एक दूसरे को बोलते है, मगर करते सब यही है कि अपने-अपने विधायकों को होटलों में कोंड देते है। लेकिन नगर पालिका परिषद में अध्यक्ष के छोटे से चुनाव में पार्षदों को भ्रमण के नाम पर बस में भरकर ले जाने का आंखो देखा हाल बालाघाट के लोगों ने आज पहली बार देखा। टीवी में विधायको के ऐसे दृश्य अक्सर दिखाई देते थे लेकिन आज हमने पार्षदों का यह दृश्य रूबरू देखा है। जिला पंचायत की हार ने भाजपा को सतर्क कर दिया। भाजपा के नेता ही कहते फिर रहे हैं कि ये पिक्चर जिला पंचायत के चुनाव से डर का प्रमाण है। डर हो भी क्यों न …..एक अनार (पद ) और सौ बीमार (दावेदार ) वाली कहावत जो चरितार्थ हो रही है। अब भाजपा ने संस्कार भी तो कांग्रेस के ‘अपना’ लिए हैं।
‘अपना’ तो, हमने (भाजपाइयों ने) भी सिवनी के एक डाक्टर को लिया था कि,जब मुसीबत आयेगी तो हमारा साथ देंगे, साथ देना तो दूर पूरे दो महीने की चुनावी (पंचायत एवं निकाय) बीमारी से भाजपाई ग्रस्त थे एक बार भी पुछा तक नहीं कि उनके इलाज की जरूरत है या नहीं। अब डॉक्टर साहब नहीं आए तो देखों ना बेचारे कई सरपंच चले गए , पांच जनपद को भी खोना पड़ा, अरे भई जिला पंचायत भी नहीं रही, लेकिन डॉक्टर साहब को दया नही आई ,क्या इसी दिन के लिए 90 किलोमीटर दूर से लाकर यहां बिठाए थे, इससे तो अच्छा था कि अपने जिले के कोई नीम हकीम को ही हम अपने जिले की जनता की सेवा के लिये रख लेते, भले ही, वो कुछ करता या ना करता मगर ‘आश्वासन’ तो जरूर देता?
‘आश्वासन’ तो प्रशासन ने भी बीते शनिवार को दिया था, जब पुलिस के अमले के साथ सडक़ो पर शहर की समस्या जानने निकला था, समस्या तो देख ली, आश्वासन भी दे दिया लेकिन दो दिन बीत गए ऐसा नजर नहीं आया कि कुछ समाधान होगा। सडक़ों पर अस्त व्यस्त यातायात, दुकानों और फुटपाथियों के अतिक्रमण के चलते सिकुड़ती सडक़े, बढ़ती जनसंख्या , त्यौहारों का समय ,और एकदम सही समय प्रशासन ने पैदल मार्च किया। हम तो अफसरों का धन्यवाद करेंगे कि उन्होंने सच बता दिया कि पैदल चलने का आदेश तो उपर से आया था। डी जी साहब को भी जवानों की कितनी चिंता रहती है, तभी तो स्वस्थ रहने के लिए पैदल चलने का परामर्श दे दिया। अब देखते हैं कितने दिन पैदल चलकर स्वयं को और शहर को कितना स्वास्थ्य (चुस्त-दुरुस्त) करते है।
चुस्त-दुरुस्त पर से याद आया, हमारे कांग्रेस के जो प्रभारी जबलपुर से आए थे ना वह बहुत ही चुस्त दुरुस्त थे, और क्यों न हो उन्होंने 15 महीना सत्ता की मलाई जो खूब खाई है। अब आप ही फैसला करें कि एक चुस्त-दुरुस्त सत्ता की मलाई खाए हुए भारी भरकरकम शरीर वाले से मेरे जैसा छोटा सा दुपला पतला दिखाई देने वाला व्यक्ति जिसको सत्ता ने कभी मलाई खिलाई ना हो कैसे मुकाबला कर सकता है। वो जो कुश्तियां भी होती है तो मैने सुना है वजन में बराबरी के हिसाब से लडऩे के लिए जोडिय़ां बनाई जाती है , या फिर उम्र के हिसाब से। मगर मैं तो ना वजन में उनके बराबर न उम्र में फिर भी देखो उन्होंने मुझसे कुश्ती लडऩे की चुनौती बकायदा व्हाट्सएप में आडियो काल करके जिला पंचायत में अध्यक्ष के चुनाव के ठीक 3 घंटे पहले सुबह-सुबह दे दी थी और जब नतीजा आया तो आप सबने देख ही लिया कि प्रभारी की 11 के मुकाबले 8 अर्थात 3 प्वाइंट से हार हो गई, फिर भी हम चुप रहेंगे।