हर साल बढ़ रहे कैंसर के मरीज़

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केवल देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रतिवर्ष 4 फरवरी के दिन को विश्व कैंसर दिवस के रूप में मनाया जाता है। जहां कैंसर से बचने और कैंसर रोग की जन जागरूकता के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन किए जाते हैं जिसमें कैंसर से पीड़ित व्यक्तियों और सामान्य लोगों को भी कैंसर से बचने, लक्षण पाए जाने पर कैंसर की जांच कराकर उसका उपचार कराने और शासकीय योजनाओं आदि की जानकारी देकर इस रोग के प्रति लोगों को जागरूक किए जाने का प्रयास किया जाता है। लेकिन इसे बालाघाट जिले का दुर्भाग्य ही कहे कि आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी जिले में कैंसर उपचार के लिए प्रॉपर जाँच, लैब, या रैडियोथैरेपी की सुविधा नही है जहां महज मामूली रूप से-कीमोथैरेपी की सुविधा मिल पाती है।जहा उपचार की बात तो दूर जिले के सबसे बड़े चिकित्सालय जिला अस्पताल में कैंसर की जांच तक की सुविधा उपलब्ध नहीं है।बावजूद इसके भी शासन-प्रशासन द्वारा महज जन जागरूकता अभियान के भरोसे कैंसर की रोकथाम किए जाने का दावा किया जा रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिले में जब कैंसर जांच और उसके उपचार की सुविधा ही नहीं है तो फिर महज जन जागरूकता के भरोसे जिले को कैंसर मुक्त कैसे बनाया जा सकता है।

इधर हर साल चला रहे जन जागरूकता अभियान
उधर हर साल बढ़ रहे कैंसर के मरीज
कैंसर की रोकथाम के लिए शासन प्रशासन द्वारा हर वर्ष जिले में जन जागरूकता अभियान चलाया जाता है प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी लोगों में कैंसर के प्रति जागरूकता लाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन किए जा रहे है। लेकिन बिना जांच और बिना उपचार सुविधा के यह अभियान कैसे सफल होगा यह समझ से परे है। उधर आंकड़ों पर गौर किया जाए तो हर साल जन जागरूकता अभियान चलाने के बावजूद भी कैंसर रोग से पीड़ित मरीजों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है प्राप्त जानकारी के अनुसार 4 फरवरी 2022 तक जिले में कैंसर पीड़ित 147 मरीज रजिस्टर्ड है।ये केवल वे मरीज है जिन्होंने कैंसर पीड़ित होने पर जिला स्वास्थ्य विभाग को जानकारी दी है जबकि प्रदेश के अन्य जिलों व देश के अन्य राज्यों के निजी अस्पतालों में कैंसर का उपचार कराने वाले जिले के रोगियों के आंकड़े भी जिला प्रबंधन के पास उपलब्ध नहीं है।

जांच के लिए जबलपुर,भोपाल पर निर्भर है बालाघाट जिला
इसे शासन प्रशासन की नाकामी कहे या जिले वासियों का दुर्भाग्य कि जिले में कैंसर जांच और उसके उपचार की सुविधा नहीं है वही कैंसर के लक्षण दिखाई देने पर जिला अस्पताल चिकित्सकों द्वारा लोगों को कैंसर की जांच ,व उपचार के लिए भोपाल या जबलपुर भेज दिया जाता है जहां कैंसर की जांच होने के बाद उनका उपचार शुरू होता है वहीं जिला अस्पताल पिछले कई वर्षों से केवल और केवल परामर्श की सुविधा देने तक ही सिमटा हुआ है।

रोगियों के सही आंकड़े ही नही तो भला योजना किस काम की
एक ओर शासन प्रशासन द्वारा कैंसर रोगी मरीजों को विभिन्न प्रकार की सुविधाएं देने और उन्हें शासन की विभिन्न योजनाओं का लाभ देकर कैंसर मुक्त कराने का दावा किया जाता है तो वहीं दूसरी ओर अब तक कितने मरीजों को शासन की योजनाओं का लाभ मिला है इसके आंकड़े भी जिम्मेदारों के पास उपलब्ध नहीं है।वहीं, स्वास्थ्य विभाग के पास यह आंकड़ा नहीं है कि जिले में कैंसर के कुल कितने मरीज हैं। वही निजी अस्पतालों में उपचार कराने वाले मरीजों का रिकॉर्ड सरकार के पास नहीं है। जब शाशन प्रशासन को ये नही मालूम कि कैंसर रोगी कितने है।तो उन रोगियों के लिए बनाई गई योजना भी सरकारी फ़ाइलों में सिमट के रह जाती है। जिनका लाभ कैंसर पीड़ितों को नही मिल पाता।

पुरुष के मुकाबले महिलाओं में अधिक हो रहा केंसर
बात अगर कैंसर रोगियों की करे तो पुरुष के मुकाबले महिलाओं में कैंसर की शिकायतें अधिक है जहां जिले सहित पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा शिकायतें महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की आ रही है वही महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के अलावा बच्चेदानी का कैंसर और सर्वाइकल का कैंसर सबसे ज्यादा पाया जा रहा है।वहीं पुरुषों में मुंह, फेफड़ा, गॉल ब्लाडर से संबंधित कैंसर के रोगी अधिक है।

कैंसर के लिए सिर्फ तंबाकू ही जिम्मेवार नहीं
आमतौर पर कैंसर के लिए तंबाकू को बडे़ पैमाने पर जिम्मेवार माना जाता है. लेकिन बच्चों में बढ़ती कैंसर की समस्या एक्सपर्ट्स को भी सोचने पर मजबूर कर रही है. पिछले कुछ वर्षो में एक्सपर्ट्स की टीम ने कैंसर पर शोध किया है।जिसमें कई चौकाने वाले खुलासे हुए हैं. एक्सपर्ट मानते हैं कि कैंसर फैलने के पीछे आर्सेनिक युक्त पानी, पेस्टीसाइट, इन्सेक्टीसाइट युक्त केमिकल, माइक्रो प्लास्टिक भी जिम्मेवार हैं। वही यह एक ऐसी बीमारी है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को जाती है। मतलब यदि परिवार में किसी सदस्य को कैंसर है तो अन्य सदस्यों को या उस व्यक्ति की ऑल औलाद को कैंसर होने के पूरे चांस होते हैं।

खर्चीला इलाज कैंसर की रोकथाम में बाधक
कैंसर की समस्या यहीं खत्म नहीं होती. कैंसर की सबसे बड़ी समस्या उसके इलाज में आने वाला खर्च भी है। जानकारी के अनुसार कैंसर के थर्ड और फोर्थ स्टेज के इलाज के दौरान एक दिन की दवा पर 10 से 25 हजार तक का खर्च आता हैं।यहां तक की ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के लिए हाल में आई एक दवा का खर्च 10 लाख रुपए प्रति महीना है. जाने माने फिजिशियन चिकित्सक मानते है कि कैंसर के इलाज में सबसे बड़ी समस्या कैंसर की दवा का महंगा होना है। शायद यही वजह है कि कई लोग कैंसर का नाम सुनकर जीने की आस छोड़ देते हैं तो वहीं कई लोग इसके महंगे उपचार से घबराकर कैंसर का उपचार ही नहीं कराते ।

जब सुविधा ही नहीं है तो हम कैंसर को कैसे हरा पाएंगे- किशोर दिनेवार
इस पूरे मामले को लेकर की गई चर्चा के दौरान जागरूक नागरिक किशोर दिनेवार ने बताया कि बालाघाट जिले में 670 गांव है परसवाड़ा बिरसा बैहर जैसे क्षेत्रों में सबसे ज्यादा जन जागरूकता की आवश्यकता है । कैंसर रोग के प्रति वहां पर जागरूकता की काफी कमी है।जिला चिकित्सालय में बहुत सारे विभाग है लेकिन कैंसर से संबंधित विभाग नहीं है, यहाँ कैंसर का ट्रीटमेंट, जांच होनी चाहिए उसका लैब होना चाहिए, उपचार की प्रॉपर व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं है। यहां के मरीजों को जबलपुर, भोपाल या नागपुर भेज देते हैं उन्हें यदि समय पर उपचार मिल जाए तो कैंसर को हराया जा सकता है लेकिन यहां चिकित्सक नहीं है ,लैब नहीं है, कैंसर के रोगी को भर्ती करने की सुविधा नहीं है, तो ऐसे में कैंसर रोग को हराने वाली बात सफल नहीं हो पाएगी, ऐसे में हम कैंसर जैसे रोग को हरा नहीं पाएंगे।

जिला अस्पताल में कैंसर का अलग से विभाग या लैब जैसी कोई सुविधा नहीं है-धबड़गाव
वही मामले को लेकर की गई चर्चा के दौरान सिविल सर्जन संजय धबड़गाव ने बताया कि यदि किसी व्यक्ति में कैंसर के लक्षण दिखते हैं तो उसे टेस्ट करने के लिए जिला अस्पताल से जबलपुर भेजा जाता है वहां पर उसके कैंसर की जांच होती है वही कीमोथैरेपी का पहला डोज लगता है उसके बाद वहां के चिकित्सक उनका ट्रीटमेंट और आवश्यक दवाइयां लिखकर उनके उपचार का शेड्यूल बना कर जिला अस्पताल भेज देते हैं जहां उनके शेड्यूल के आधार पर उनको दवाइयां सहित अन्य प्रकार की थेरोपी दी जाती है। वही स्थिति गंभीर होने पर उन्हें शासन की योजनाओं का लाभ देकर बाहर उपचार के लिए पहुंचाया जाता है। उन्होंने बताया कि यदि कोई संदिग्ध मरीज आता है तो हम उसे मेडिकल सेंटर रेफर कर देते हैं हमारे पास इसके लिए अलग से कोई विभाग नहीं है लेकिन हम क्रिमोथैरेपी देते हैं। एक साल में 147 लोगों को क्रिमोथैरेपी दी जा चुकी है। मरीजों के सैंपल जबलपुर मेडिकल कॉलेज भेज देते हैं वही हायर केस होने पर उसे भोपाल एम्स तक भेजा जाता है। अगर बहुत छोटा सा केस है फर्स्ट स्टेज में है तो जिला अस्पताल में इलाज कर लेंगे लेकिन यहां भर्ती की कोई सुविधा नहीं है। कैंसर पेेशेंट का जल्द इलाज होना चाहिए यदि समय पर उसे उपचार मिल गया तो कैंसर से बचा जा सकता है लोगों से अपील है कि वे शिविर में आए अस्पताल आकर चेक कराएं उन्होंने आगे बताया कि कैंसर के केेस प्रति वर्ष लगातार बढ़ते जा रहे हैं शरीर में जितने भी हिस्से हैं उन सब में कैंसर की बीमारी हो सकती है सिर्फ तंबाकू खाने से ही कैंसर नहीं होता इसके अन्य भी कारण है। उन्होंने बताया कि जिले में लैब, एक्सपोर्ट या विभाग फिलहाल नहीं है कुछ दिन पहले जिला अस्पताल में अतिरिक्त मेडिकल बिल्डिंग का भूमि पूजन हुआ है उसमें नई-नई को सुविधाएं मिलेंगी कोशिश की जाएगी कि कैंसर के लिए भी उसमें लैब या अन्य प्रकार की सुविधाएं दी जा सके।

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