मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 14 फीसद से अधिक अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण पर अंतरिम रोक बरकरार रखी है। मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की युगलपीठ ने मामले की अंतिम सुनवाई 17 फरवरी को निर्धारित की है। अंतिम सुनवाई से पूर्व सभी पक्षकारों को अपने-अपने लिखित तर्क प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं।
राज्य सरकार ने 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया है : राज्य सरकार ने वर्ष 2019 में ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया है। इसके खिलाफ जबलपुर निवासी असिता दुबे और अन्य की ओर से याचिकाएं दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी वाले फैसले में स्पष्ट किया है कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिए जाने से आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत को पार कर गई है। इस वजह से सामान्य वर्ग के आवेदकों का हक मारे जाने की स्थिति पैदा हो गई है। कायदे से आरक्षण का प्रतिशत निर्धारित से अधिक नहीं होना चाहिए। ऐसा हुआ है, जो कि अनुचित है। इसलिए इस निर्धारण को चुनौती दी गई। हाई कोर्ट से अपेक्षा है कि अनुचित प्रावधान को निरस्त किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया था : सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर 2020 को महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिए गए 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को निरस्त कर दिया है। वहीं ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन ने याचिका दायर कर 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का समर्थन किया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी, ब्रहमेन्द्र पाठक, इंटरवीनर की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर पैरवी कर रहे हैं, जबकि राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पुरूषेन्द्र कौरव उपस्थित हुए।