वारासिवनी बिटिया हिमांशी सुराना सुपुत्री- तरुण कल्पना जी सुराना ने यह पराक्रम कर दिखाया। नगर की लाडली बिटिया ने रविवार नगर से विदाई ली और 5 फरवरी को छत्तीसगढ़ राज्य के राजिम में आचार्य श्री पीयूष सागर सूरि जी की पावन निश्रा में भगवती दीक्षा अंगीकार कर प्रशांतमना प्रियंकरा श्री जी म.सा. की सुशिष्या बन साध्वी जीवन में प्रवेश करेगी।
रविवार को दुल्हन सी सजी बिटिया को विदा करने सकल जैन श्री संघ सहित पूरा वारासिवनी उमड़ पड़ा। घर से विदा होकर नगर से बाहर निकलने के पूर्व जिन मंदिर के दर्शन हेतु सकल श्री संघ के साथ बाजे-गाजे, नृत्य, आदि से सुसज्जित बिदाई के बरघोडे के लिए घर-घर से लोग तिलक एवं स्वागत हेतु पलक पावड़े बिछाए आतुर थे।
जिन मंदिर के दर्शन के पश्चात पूरा नगर दीक्षार्थी हिमांशी को विदा करने के लिए उनकी गाड़ी के साथ-साथ दीनदयाल चौक तक पैदल गया। ‘संयम कोई मिट्टी का खिलौना नहीं जो बाजार से खरीद ले। भौतिक चकाचौंध से संयम जीवन में आना मुश्किल है। साधु बनना सिर्फ वेश परिवर्तन नहीं, जीवन परिवर्तन है।’
रविवार जब नगर की लाडली इस मार्ग पर जाते हुए आखरी बार सांसारिक रिश्ते नातों के समक्ष हाथ जोड़कर विदा ले रही थी तो माता-पिता और भाई-बहन फूट-फूट कर रो पड़े, और वहाँ उपस्थित हर एक व्यक्ति की आँखों में आँसू और मन में सुखद संयम यात्रा की शुभकामनाएँ थी।
अगर कोरोना के संक्रमण की आपदा न होती तो यह भव्य जैन भगवती दीक्षा वारासिवनी की धरती पर ही सम्पन्न होती किन्तु विधि के अपने निर्धारित कर्म होते है जिसके आगे किसी का बस नहीं चलता।
संयमपथ पर जाते हुए दीक्षार्थी हिमांशी ने सकल वारासिवनी से दीक्षा में सम्मिलित होने का करबद्ध निवेदन किया। उसके बाद नम आँखों से श्रीसंघ ने बिटिया को विदाई दी।