28000 किमी रफ्तार और 3000 डिग्री गर्मी…क्या धरती पर लौट पाएंगी सुनीता विलियम्स? री-एंट्री कोरिडोर में उल्का पिंड भी खाक

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नई दिल्ली: 8 महीने से अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर फंसे भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर को तय समय से पहले ही धरती पर लाया जा सकता है। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के अनुसार ‘स्पेसएक्स’ आगामी अंतरिक्ष यात्री उड़ानों के लिए कैप्सूल बदलेगा, ताकि बुच विल्मोर और सुनीता विलियम्स को मार्च के अंत या अप्रैल की शुरुआत के बजाय मार्च के मध्य में ही वापस लाया जा सके। परीक्षण पायलटों को जून में बोइंग के स्टारलाइनर कैप्सूल पर वापस लाया जाना था। हालांकि, कैप्सूल को अंतरिक्ष स्टेशन तक पहुंचने में इतनी परेशानी हुई कि नासा ने इसे खाली वापस लाने का फैसला किया। इसके बाद स्पेसएक्स ने अधिक तैयारियों की जरूरत को देखते हुए नए कैप्सूल को भेजने में देरी की, जिससे सुनीता और बुच को वापस लाने के मिशन में और देर हुई। अब 12 मार्च को नए कैप्सूल का प्रक्षेपण किया जाएगा। बीते साल 5 जून को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचने के बाद अंतरिक्ष यान में हीलियम की लीकेज की समस्या आई थी। इसके 5 थ्रस्टर भी खराब हो गए थे। यहां तक कि यान को बिजली देने वाला सर्विस मॉड्यूल में भी दिक्कतें आईं। अंतरिक्ष यान के धरती के वातावरण में एंट्री को ले

धरती में एंट्री के लिए रखनी होगी 7.8 किमी प्रति सेकेंड की रफ्तार

इसरो साइंटिस्ट विनोद कुमार श्रीवास्तव के अनुसार, किसी भी वस्तु को पृथ्वी की निचली कक्षा में प्रवेश के लिए 7.8 किमी प्रति सेकेंड की रफ्तार रखनी होगी। चूंकि, स्पेसयान के पास हाई काइनेटिक एनर्जी होती है, ऐसे में धरती के एटमॉस्फियर में एंट्री के लिए इस एनर्जी को बचाए रखने की जरूरत होती है। धरती के वातावरण में री-एंट्री के लिए इसीलिए रेट्रोरॉकेट का इस्तेमाल करना होता है। पैराशूट या एयर ब्रेक का इस्तेमाल करने से पहले क्रू मेंबर्स को अंतरिक्ष वाहनों को सबसोनिक गति तक धीमा किया जाना चाहिए।

क्या होती है सबसोनिक स्पीड, जिस पर होती है एंट्री

सबसोनिक स्पीड ध्वनि की गति से कम गति होती है। समुद्र तल पर ध्वनि की गति करीब 768 मील प्रति घंटा (1,236 किलोमीटर प्रति घंटा) होती है। इसे ‘मैक 1’ के नाम से जाना जाता है। सबसोनिक हवाई जहाज, वाणिज्यिक एयरलाइनर, निजी जेट और सैन्य हवाई जहाज मैक 0.6 से मैक 0.9 की रफ्तार से उड़ते हैं।

कर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व साइंटिस्ट विनोद कुमार श्रीवास्तव से समझते हैं।

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