जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट-यासीन (जेकेएलएफ-वाई) के अध्यक्ष यासीन मलिक ने UAPA ट्रिब्यूनल को एक हलफनामा सौंपा है। इस हलफनामे में मलिक ने बताया कि उसने 30 साल पहले ही हथियार छोड़ दिया है और अब वह गांधीवादी हो गया है। उसने ऐसा 1994 में “एकजुट स्वतंत्र कश्मीर” स्थापित करने के लिए किया है। बता दें कि यासीन मलिक इस समय टेरर फंडिंग मामले में दिल्ली के तिहाड़ जेल में सजा काट रहा है। उसने अपने हलफनामे में कहा कि मैंने 1994 से ही हिंसा और हथियार छोड़ दिया है।
गांधीवादी हो गया यासीन मलिक
यासीन मलिक ने यूएपीए ट्रिब्यूनल में एक हलफनामा पेश किया। मलिक ने लिखा कि उसने 30 साल पहले यानी 1994 में ही हिंसा और हथियार छोड़ दिया था। अब वह गांधीवादी हो गया है। मलिक ने आगे लिखा कि उन्होंने 1994 में “एकजुट स्वतंत्र कश्मीर” स्थापित करने के जेकेएलएफ-वाई के उद्देश्य को प्राप्त करने के साधन के रूप में हिंसा के रास्ते को छोड़ गांधीवादी हो गया है। यासीन के हलफनामे को पिछले महीने जारी किया गया था और गुरुवार को राजपत्र में प्रकाशित किए गए यूएपीए ट्रिब्यूनल के आदेश में उद्धृत किया गया था। 1967 के गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम(UAPA) के तहत जेकेएलएफ-वाई को ‘अवैध संघ’ घोषित करने के निर्णय को आगे के लिए बरकरार रखा गया था।
वायुसैनिकों के खून से रंगे हैं यासीन के हाथ
यासीन मलिक ने 1988 में जेकेएलएफ-वाई की स्थापना की थी। वह 1990 में श्रीनगर के रवालपुरा में चार भारतीय वायु सेना कर्मियों की हत्या के मामले में मुख्य आरोपी है। मलिक की पहचान इस साल की शुरुआत में मुख्य शूटर के रूप में की गई थी। उसे मई 2022 में एनआईए की ओर से जांच किए गए एक आतंकवाद वित्तपोषण मामले में आजीवन कठोर कारावास भी दिया गया था।
यासीन ने ट्रिब्यूनल को अपने हलफनामे में दावा किया कि उसे नब्बे के दशक की शुरुआत में “विभिन्न राज्य अधिकारियों” द्वारा आश्वासन दिया गया था कि वे कश्मीर विवाद को एक सार्थक बातचीत के माध्यम से हल करेंगे और एक बार जब उन्होंने एकतरफा युद्धविराम शुरू किया, तो उनके खिलाफ और जेकेएलएफ-वाई के सभी मामलों को वापस ले लिया जाएगा। ट्रिब्यूनल के आदेश में दर्ज है कि इसके बाद, 1994 में उसके और उनके संगठन द्वारा एकतरफा युद्धविराम घोषित किया गया था और इसके परिणामस्वरूप, उसे TADA के तहत 32 लंबित मिलिटेंसी से संबंधित मामलों में जमानत प्रदान की गई थी और उसके बाद, 1994 से 2018 तक युद्धविराम समझौते के अनुसार उसके खिलाफ कोई भी मामला आगे नहीं बढ़ाया गया था।