नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईंबाबा का शनिवार रात हैदराबाद के निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज अस्पताल में निधन हो गया। वह 57 साल के थे। साईंबाबा व्हीलचेयर पर थे। वो साल साल से ज्यादा वक्त तक माओवादियों से संबंध के आरोप में जेल में रहे। इसी साल मार्च में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था। उनकी मौत पित्त की पथरी निकालने के ऑपरेशन के बाद हुई जटिलताओं के कारण हुई।
2014 में यूएपीए के तहत दोषी ठहराया गया
साईंबाबा को मई 2014 में गिरफ्तार किया गया था और 2017 में गढ़चिरौली की एक अदालत ने उन्हें देश के खिलाफ जंग छेड़ने की साजिश रचने और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत दोषी ठहराया था। हालांकि, मार्च में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने निचली अदालत की कार्यवाही को न्याय की विफलता करार देते हुए उन्हें बरी कर दिया था।
अदालत ने इसी साल किया रिहा
अदालत ने कहा था कि उनके खिलाफ UAPA के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं ली गई थी और अभियोजन पक्ष उनके घर से आपत्तिजनक सामग्री जब्त होने की बात साबित करने में नाकाम रहा था। रिहाई के बाद साईंबाबा ने कहा था कि उन्हें जेल में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा था।
जेल से निकलकर लगाए ये आरोप
उन्होंने कहा था, ‘जब मैं जेल गया था, तो मेरी अपंगता के अलावा मुझे कोई और बीमारी नहीं थी। अब, मेरा दिल केवल 55% काम कर रहा है और मुझे मांसपेशियों में तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है। मेरा लिवर और गॉलब्लैडर भी प्रभावित हुए हैं। मेरा दाहिना हाथ पूरी तरह से काम नहीं करता है। मेरे डॉक्टर का कहना है कि मुझे कई ऑपरेशन कराने की जरूरत है।’
जेल में एकांत कारावास में रखा
साईंबाबा ने यह भी कहा था कि नागपुर सेंट्रल जेल में उन्हें ‘ऐग सेल’ (एकान्त कारावास) में रखा गया था, जिससे उन्हें मानसिक रूप से भी परेशानी हुई थी। उन्होंने कहा था, ‘मैं जेल अस्पताल नहीं जा सका। जेल में विकलांगों के लिए एक भी रैंप नहीं था, अलग शौचालय नहीं थे। मुझे हमेशा शौचालय और नहाने के लिए शारीरिक रूप से उठाया जाता था। कोई ऐसे कैसे जी सकता है?’
जांच एजेंसियों को कथित तौर पर जेएनयू के एक छात्र की गिरफ्तारी के बाद साईंबाबा का नाम पता चला था, जिसने दावा किया था कि वह छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ के जंगलों में छिपे माओवादियों और प्रोफेसर के बीच एक कोरियर के रूप में काम कर रहा था।