Uttarakhand Glacier: कैसे हुआ ये हादसा, क्या होते हैं ग्लेशियर और टूटने पर क्या तबाही लाते हैं,जानें सब

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उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर फटने की खबर है पानी के तेज बहाव के मद्देनजर कीर्ति नगर, देवप्रयाग, मुनि की रेती इलाकों को अलर्ट पर रहने को कहा गया। पानी के बहाव में कई घरों के बहने की आशंका है।चमोली प्रशासन ने अधिकारियों को धौलीगंगा नदी के किनारे बसे गांवों में रहने वाले लोगों को बाहर निकालने का निर्देश दिया है, ग्लेशियर फटने का ये हादसा कैसे हुआ इसके पीछे की वजह क्या है, ये जानने की कोशिश करते हैं।

बताया जा रहा है कि चमोली में ग्लेशियर फटने से आई बाढ़ के बाद अलर्ट जारी कर दिया गया है, उत्तराखंड की धौली गंगा नदी में भयंकर बाढ़ आने के बाद से बिजली परियोजना में कार्यरत करीब 150 कर्मचारी लापता बताए जा रहे हैं वहीं अभी इससे आगे और भारी तबाही की आशंका जताई जा रही है।  

क्या होते हैं हिमनद (Glacier)

ग्लेशियर पृथ्वी की सतह पर विशाल आकार की गतिशील हिमराशियां हैं, जो अपने भार के कारण पर्वतीय ढलानों का अनुसरण करते हुए नीचे की ओर प्रवाहमान होती रहती हैं।यह हिमराशि सघन होती है और इसकी उत्पत्ति ऐसे बर्फीले इलाकों में होती है, जहाँ हिमपात की मात्रा हिम के पिघलने की दर से अधिक होती है जिसके फलस्वरूप प्रतिवर्ष बर्फ की एक बड़ी मात्रा अधिशेष के रूप में जमा होती रहती है। 

वर्ष दर वर्ष बर्फ के जमा होने से निचली परतों के ऊपर दबाव पड़ता है और वे सघन हिम के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। यही सघन हिमराशि अपने भार के कारण ढालों पर प्रवाहित होती है जिसे हिमनदी कहते हैं। प्रायः यह हिमखंड नीचे आकर पिघलता है और पिघलने पर पानी मे परिवर्तित हो जाता है।

Glacier से बाढ़ कैसे आती है क्या है कारण?

हिमनदियाँ पृथ्वी के उन बर्फीले भागों में पाई जाती हैं जहाँ हिम पिघलने की दर की अपेक्षा हिमपात अधिक होता है। साधारणत: हिमनदी रचना के लिए हिम का सौ से दो सौ फुट मोटी परतों का जमा होना अनिवार्य शर्त है। इतनी मोटाई पर दबाव के कारण बर्फ़ हिमनदी में परिवर्तित हो जाती है।

इन हिमस्तरों में बर्फ की अलग-अलग परतें मिलती हैं। प्रत्येक परत एक वर्ष के हिमपात को दर्शाती है। दबाव के कारण नीचे की परत अपने ऊपर वाली परत से अपेक्षाकृत अधिक सघन होती है। इस प्रकार बर्फ़ अधिकाधिक घनी होती जाती है। पहले दानेदार बर्फ ‘नैवे’ की तथा बाद में ठोस हिम की रचना होती है।

तीव्र प्रतिबल के कारण बर्फ़ में दरारें पड़ जाती हैं। कहीं-कहीं ये दरारें दो सौ फुट तक गहरी हो सकती हैं। कुछ ग्‍लेशियर हर साल टूटते हैं, कुछ दो या तीन साल के अंतर पर कुछ कब टूटेंगे, इसका अंदाजा लगा पाना लगभग बेहद मुश्किल होता है।

क्या होगा अब आगे?

चमोली में ग्लेशियर टूटने से भारी तबाही की आशंका जताई जा रही है ग्‍लेशियर की बर्फ धौलीगंगा नदी में बह रही है और आसपास के इलाकों में जान-माल के भारी नुकसान का डर है। ऋषिगंगा पावर प्रॉजेक्‍ट को भी नुकसान की खबर है। अलकनंदा नदी के किनारे रहने वालों को फौरन सुरक्षित स्‍थानों की ओर जाने के निर्देश दिए गए है वहीं भागीरथी नदी का पानी रोक दिया गया है। चमोली जिले के पास ग्लेशियर टूटने से आए प्राकृतिक प्रकोप से प्रभावितों के राहत एवं बचाव हेतु राज्य सरकार द्वारा 1070 एवं 9557444486 हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए हैं। भारतीय सेना ने उत्‍तराखंड सरकार और NDRF की मदद के लिए चॉपर और सैनिकों को तैनात किया है, आर्मी हेडक्‍वार्टर्स से भी हालात पर नजर रखी जा रही है। सेना के तमाम जवानों को बाढ़ प्रभावित इलाकों में भेजा जा रहा है।

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