बजट के बाद EPF के बदले नियम, जानें कौन-सा होगा आपके लिए बेहतर रिटायरमेंट सेविंग प्लान

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retirement saving plan आज के समय रिटायरमेंट के बाद भविष्य में पैसा को लेकर कोई परेशानी ना हो, इसके लिए कई प्लान मार्केट में है। जिसमें निवेश कर लोग अपने आगे के जीवन को सिक्योर करते हैं। हालांकि ज्यादातर लोग कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) और नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएफ) पर भरोसा करते हैं। यह टैक्स बचाने के साथ अच्छा ब्याज भी देता है। ईपीएफ में खाते में कर्मचारियों को अपने वेतन का कम से कम 12 फीसदी जमा करना होता है। संस्थान और कंपनी भी उतनी रकम डालती है। यह योगदान कर्मचारी के रिटायरमेंट फंड में जमा होता रहता है। 58 वर्ष की आयु के बाद पूरी रकम निकाली जा सकती है। वहीं मेडिकल इमरजेंसी, घर बनाने, एजुकेशन आदि के लिए भी आंशिक रूप से पैसे निकालने की सुविधा है।

वहीं नेशनल पेंशन सिस्टम गर्वनमेंट रिटायरमेंट स्कीम है। 1 जनवरी 2004 को केंद्र सरकार ने इसे लॉन्च किया था। 2009 के बाद यह योजना निजी क्षेत्रों के कर्मचारियों के लिए भी लागू हो गई। कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी उम्र 18 से 60 साल है। वह अकाउंट खुलवा सकता है। इस योजना में दो तरह के खाते होते हैं। टियर-1 में जो भी पैसा जमा करते हैं उसे समय से पहले नहीं निकाल सकते हैं। जबकि टियर-2 में खाता धारक अपनी इच्छा से पैसा जमा और निकाल सकता है।

पीएफ कॉन्ट्रिब्यूशन ब्याद पर लगेगा टैक्स

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते हुए कहा कि पीएफ में 2.5 लाख रुपए वार्षिक तक के कॉन्ट्रिब्यूशन से मिलने वाले ब्याज टैक्स फ्री रहेगा। यह उच्च आय वाले कर्मचारियों को खासतौर पर प्रभावित करेगा। यह नया प्रस्ताव 1 अप्रैल 2021 या उसके बाद होने वाले कॉन्ट्रिब्यूशन से लागू होगा।

एनपीएफ और ईपीएफ क्या है बेहतर?

एनपीएस पर रिटर्न एनएवी पर निर्भर करती है, जो कभी भी बढ़ और घट सकती है। जबकि पीएफ का रिटर्न सालाना घोषित ब्याज दर पर मिलता है। पीएफ में सुरक्षा और सुनिश्चित रिटर्न मिलता है। वहीं एनपीएस जोखिम के साथ अच्छा रिटर्न देना है। यह दोनों विकल्प टैक्ल में छूट और रिटर्न देते हैं।

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