राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने मदरसों को बंद करने की मांग के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में जवाब दिया है। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे अच्छी शिक्षा नहीं पा रहे हैं। एनसीपीसीआर का कहना है कि मदरसे राइट टु एजुकेशन (RTE) एक्ट के दायरे में नहीं आते, जिससे इन बच्चों को स्कूलों जैसी शिक्षा नहीं मिल पाती। आरटीई एक्ट के तहत स्कूलों में बच्चों को मिड डे मील, यूनिफॉर्म और अच्छे शिक्षक मिलते हैं, लेकिन मदरसों में ये सुविधाएं नहीं हैं।
‘शिक्षा के मौलिक अधिकारों से वंचित हो रहे बच्चे’
एनसीपीसीआर का मानना है कि इससे मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। मदरसे को राइट टु एजुकेशन (RTE) एक्ट से बाहर रखा गया है। ऐसे में मदरसा में पढ़ने वाले बच्चे न सिर्फ क्वालिटी एजुकेशन से वंचित हो रहे हैं, बल्कि औपचारिक शिक्षा से भी वंचित हो रहे हैं जो स्कूलों में पढ़ाए जाते हैं। इसके साथ ही वे शिक्षा के मौलिक अधिकारों से वंचित हो रहे हैं। NCPCR ने मदरसों में शिक्षा के तरीके पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि वहां बच्चों को शारीरिक दंड देना, शिक्षा के अधिकार (RTE) कानून के खिलाफ है।
क्या है मामला?
यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील से जुड़ा है। हाईकोर्ट ने ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम’ को रद्द कर दिया था। NCPCR ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा। NCPCR ने कहा कि मदरसों में बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिलती। यहां शिक्षक भी योग्य नहीं हैं। यह कानून बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहा है। NCPCR ने यह भी कहा कि मदरसे गैर-मुस्लिम बच्चों को इस्लामिक शिक्षा दे रहे हैं। यह संविधान के खिलाफ है।
‘यह बच्चों के साथ भेदभाव है’
NCPCR ने आगे कहा, ‘अल्पसंख्यक दर्जे वाले ये संस्थान बच्चों को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रहे हैं। यह बच्चों के साथ भेदभाव है। उन्हें कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14) का अधिकार नहीं मिल रहा है। धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव निषेध (अनुच्छेद 15 (1)) का भी उल्लंघन हो रहा है। NCPCR ने कहा कि मदरसों में RTE के तहत मिलने वाली सुविधाएं नहीं हैं।