नई दिल्ली: ऑस्ट्रेलियाई पॉलिटिकल साइंटिस्ट और लेखक क्रिस्टोफर स्नेडेन ने अपनी किताब ‘Understanding Kashmir and Kashmiris’ में लिखा है कि कश्मीर के डोगरा के एक जंगबाज गुलाब सिंह की अगुवाई में 1834 में लद्दाख पर कब्जे के लिए लड़ाई लड़ी गई। कहा जाता है कि डोगरा जनरल जोरावर सिंह ने बड़ी बहादुरी से लद्दाख पर कब्जा कर लिया और इसे सिख साम्राज्य का हिस्सा बना दिया था।
यह उस दौर की बड़ी जीत मानी गई। दरअसल, लद्दाख पर कब्जे से महाराजा गुलाब सिंह को स्थानीय बकरियों से निकलने वाले ऊन के मध्य एशिया तक के कारोबार पर नियंत्रण मिल गया था। हालांकि, 1842 में गुलाब सिंह से यह इलाका तिब्बती-चीनी सैनिकों ने छीन लिया था। मगर, उन्होंने 1842 में इस पर फिर अपना नियंत्रण हासिल कर लिया। 1846 में जब गुलाब सिंह जम्मू-कश्मीर के महाराजा बने तो उन्होंने लद्दाख को अपने राज्य का अहम हिस्सा बना लिया। लद्दाख के विवाद की कहानी यहीं से शुरू होती है। जानते हैं इस इलाके में डेपसांग और डेमेचोक नाम के दो पेट्रोलिंग पॉइंट्स, जो भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील हैं।
LAC पर पूर्वी लद्दाख में गलवां घाटी संघर्ष के बाद बदले हालात
डिफेंस एंड स्ट्रेटेजिक अफेयर्स एनालिस्ट ले.कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, चीन की सीमा पर यानी Line of Actual Control (LAC) पर स्थित पूर्वी लद्दाख की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी खानाबदोशों की है। उनका जीवन याक और भेड़ों पर निर्भर है। 15 हजार से लेकर 17 हजार फीट की ऊंचाई तक पहाड़ों के बीच में यहां सदियों से छोटे-छोटे दर्जनों गांव बसे हुए हैं। यहां का जीवन बहुत कठिन है। जून, 2020 में गलवां घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष के बाद यहा की स्थिति बिल्कुल बदल गई।