अफगानिस्तान की कुल 3.60 कराेड़ आबादी में करीब 9% की हिस्सेदारी हजारा समुदाय की है। लेकिन इन अल्पसंख्यकों को संरक्षण मिलने के बजाय वहां इस समुदाय के लोग आतंकियाें के हाथों जिंदगियां कुर्बान कर रहे हैं। यहां तक कि जन्म के समय ही इस समुदाय के बच्चों को मारा जा रहा है।
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल स्थित एक मानवाधिकार संगठन है- ‘ह्यूमन राइट्स एंड इरैडिकेशन ऑफ वॉयलेंस’। इसके कार्यकारी निदेशक वदूद पेद्रम के अनुसार, 2015 के बाद से आतंकी हमलों में कम से कम 1,200 हजारा लोग मारे गए हैं।
स्कूलों, शादियों, मस्जिदों, खेल क्लबों में, हर जगह उन पर हमले हो रहे हैं। वे बताते हैं- ‘पिछले साल आतंकियों ने एक प्रसूति अस्पताल पर हमला किया। इसमें हजारा समुदाय के नवजात शिशुओं और उनकी मांओं सहित 24 लोगों की मौत हो गई थी। पिछले महीने ही इसी इलाके के सैयद अल-शहादा स्कूल में तिहरा बम विस्फोट हुआ। इसमें लगभग 100 लोग मारे गए थे। ज्यादातर हजारा स्कूली छात्राएं थीं।’पेद्रम की बातों को हालिया घटनाएं पुष्ट करती हैं।
मसलन- पिछले हफ्ते ही हजारा समुदाय की आदिला खियारी और उनकी दो बेटियां- होस्निया और मीना पर्दे खरीदने के लिए बाजार गई थीं। कुछ देर बाद एक बस में बम विस्फोट हुआ। इसमें होस्निया गंभीर रूप से घायल हो गई, जबकि मां और मानी की हमले में जान चली गई। बाद में होस्निया में भी दम तोड़ दिया। काबुल में बीते 48 घंटों में यह चौथी बस थी, जिसे बम से उड़ाया गया था। इन विस्फाेटाें में 18 लाेग मारे गए थे।
हजारा समुदाय का आरोप- सरकार भेदभाव कर रही है
यहां अधिकांश हजारा शिया मुसलमान हैं। इसलिए वे मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं। इस समुदाय के मुखिया कतरदुल्लाह ब्रोमन कहते हैं- ‘सरकार को हमारी परवाह नहीं है। हमारे अपने लाेगाें का भविष्य अंधकार में है।’