यहां आकर नर्मदा की मुड़ गई थी धारा, 10वीं सदी में बना है गौरीशंकर चौसठ योगिनी मंदिर, गुप्तेश्वर में भगवान राम ने की थी महादेव की पूजा

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जबलपुर मां नर्मदा के तट पर बसा शहर है। मान्यता है कि नर्मदा का हर कंकड़ शंकर है। जिले में मां नर्मदा के किनारे शंकर जी के कई मंदिर हैं। कई तो इतने प्राचीन हैं कि अपने आप में इतिहास को समेटे हुए हैं। विश्व प्रसिद्ध भेड़ाघाट के पास 50 फीट ऊंचे पर्वत पर बना प्रसिद्ध गौरीशंकर चौसठयोगिनी मंदिर, गुप्तेश्वर मंदिर सहित कई ऐतिहासिक मंदिर सावन में श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बने रहते हैं।

गौरीशंकर चौसठयोगिनी मंदिर के बारे में किवदंती है कि भगवान शंकर और माता पार्वती भ्रमण पर निकले थे। भेड़ाघाट में ऊंचाई वाले स्थान पहुंचे। यहां सुवर्ण ऋषि तप कर रहे थे। भगवान के दर्शन पाकर वे प्रसन्न हो गए। भगवान शंकर व मां पार्वती से प्रार्थना की, हे भगवन जब तक वे नर्मदा पूजन कर न लौटें, आप यहीं ठहरें। ऋर्षि सुवर्ण के मन में मां नर्मदा का पूजन करते समय भाव आया कि भगवान यहीं विराजमान हो जाएं तो सभी का कल्याण होगा।

पुरातत्व विभाग करता है इस मंदिर की देखरेख।

पुरातत्व विभाग करता है इस मंदिर की देखरेख।

ऋषि ने जल समाधि ले ली। ऋषि की प्रतीक्षा में भगवान यहीं विराजमान हो गए। तब भगवान शंकर ने नर्मदा से प्रार्थना की कि वे दाएं की बजाय बाएं ओर से प्रवाहित हों, जिससे श्रद्धालुओं काे दर्शन करना सुगम हो जाए। मां नर्मदा ने कहा कि विशालकाय चट्‌टानों के बीच से रास्ता बनाना संभव नहीं। कहते हैं कि भगवान शंकर के प्रभाव से यहां के पहाड़ तीन दिन के लिए मक्खन की तरह कोमल हो गए और मां नर्मदा ने अपना मार्ग बदला तो धुआंधार की उत्पत्ति हुई। नर्मदा का पुराना मार्ग अब भी बैनगंगा बूढ़ी नर्मदा के नाम से जाना जाता है। कल्चुरी शासक युवराजदेव ने त्रिभुजी कोण संरचना पर आधारित इस मंदिर का निर्माण कराया है। पुरातत्व विभाग इसकी देख-रेख करता है।

ग्वारीघाट में शिव पंचायतन मंदिर।

ग्वारीघाट में शिव पंचायतन मंदिर।

इस शिव मंदिर में चार पहर होती है पूजा

संस्कारधानी के नर्मदा तट खारीघाट (ग्वारीघाट) स्थित हजारों वर्ष प्राचीन शिव पंचायतन मंदिर में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है। शिव पंचायतन की स्थापना जहां पर भी होती है वहां पर शिव रात्रि के विभिन्न पहरों में पूजन व अभिषेक विशिष्ट फलदायी होता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार जबलपुर (मप्र) में मां नर्मदा तट के खारी घाट स्थित प्राचीन गोंडवाना काल के शिव पंचायतन मंदिर में पूजन का विशेष महत्व है।

भगवान श्रीराम ने रेत से की थी गुप्तेश्वर शिवलिंग की स्थापना।

भगवान श्रीराम ने रेत से की थी गुप्तेश्वर शिवलिंग की स्थापना।

गुप्तेश्वर की स्थापन भगवान राम ने की थी

गुप्तेश्वर महादेव की स्थापना को लेकर मान्यता है कि भगवान राम ने वनगमन के समय इसकी स्थापना की थी। नर्मदा तट के त्रिपुरी तीर्थ में वे गुप्त वास करते हुए रेत से अपने आराध्य भगवान शंकर का शिवलिंग बनाया था। शास्त्रों के अनुसार गुप्तेश्वर महादेव को रामेश्वरम ज्योर्तिलिंग का उपलिंग भी कहा जाता है।

द्वापर युग की है गैबीनाथ भगवान की पिंडी।

द्वापर युग की है गैबीनाथ भगवान की पिंडी।

एक हजार साल से है भगवान गैबीनाथ का प्राकृतिक स्वरूप

गढ़ा पुरवा स्थित बस स्टैंड के सामने बने गैबीनाथ मंदिर में भगवान का चट्टान पर प्राकृतिक स्वरूप देखने मिलता है। इस शिवलिंग का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है। हालांकि पिंडी बहुत छोटी है, लेकिन शिवलिंग स्पष्ट नजर आता है। मंदिर से जुड़े डॉ. बीपी अवस्थी बताते हैं कि पुराणों में भी भगवान गैबीनाथ का उल्लेख हैं। कल्चुरी काल में भगवान गैबीनाथ की उपासना की जाती रही। गोंडकाल में इस मंदिर का निर्माण किया गया था। राजा निजामशाह के समय 1765 में यहां विशाल यज्ञ कराया गया था। गोंड राजा नरहरिशाह जब भी गढ़ा में रहते थे तो नर्मदा जल से भगवान का विशेष अभिषेक करते थे। भगवान का अभिषेक सावन माह में करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

कैलाशधाम महादेव मंदिर में जलाभिषेक के साथ पौधारोपण का है महत्व।

कैलाशधाम महादेव मंदिर में जलाभिषेक के साथ पौधारोपण का है महत्व।

कैलाशधाम में एक पौधा लगाने से पूरी होती है मनोकामना

मटामर में स्थित कैलाशधाम मंदिर में भगवान शंकर के साथ-साथ प्रकृति की पूजा होती है। मान्यता है कि यहां एक पौधा रोपने के साथ भगवान का दर्शन करने पर सभी मनोकामना पूरी हो जाती है। किवदंती है कि वर्ष 1980 में संत रामूदादा को भगवान शंकर ने स्वप्न दिया था कि मैं भेड़ाघाट के स्वर्गद्वारी में हूं। वहां से लाकर अपने तपस्थली स्थापित करो। इसके बाद वे स्वर्गद्वारी गए तो यहां आकर पहाड़ पर भगवान शंकर की पिंडी स्थापित की। तब से ये कैलाशधाम के रूप में प्रसिद्ध होता गया। यहां सावन में निरंतर कांवड़ यात्रा का आयोजन होता रहा है। पहले वर्ष में 5000 और कोविड से पहले के वर्ष में एक लाख लोग कांवड़ यात्रा में शामिल हो चुके हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान एक तुला में जल और एक तुला में पौधे लेकर लोग पहुंचते हैं। अब ये बंजर पहाड़ी हरियाली में तब्दील हो गया।

जबलपुर के विजय नगर में स्थित कचनार सिटी में विशाल शिव प्रतिमा।

जबलपुर के विजय नगर में स्थित कचनार सिटी में विशाल शिव प्रतिमा।

पर्यटन का केंद्र है कचनार सिटी में 76 फीट ऊंची भगवान शंकर की प्रतिमा
कचनार सिटी में शंकर भगवान की 76 फीट ऊंची प्रतिमा के दर्शन करने लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां शिव भगवान की बैठी हुई मुद्रा में प्रतिमा बनी है। प्रतिमा के अंदर ही आपको एक गुफा देखने मिलेगी। गुफा के अंदर 12 शिवलिंग की स्थापना की गई है। आप गुफा में एक दरवाजे से घुसते हैं और 12 शिवलिंगों के दर्शन करते हुए दूसरे दरवाजे से बाहर आ जाते हैं। मंदिर परिसर में खूबसूरत गार्डन है। सावन के महीने में यहां रूद्राभिषेक कराने लोग दूर-दूर से आते हैं।

कांवड़ यात्राओं को लेकर अधिकारी बैठक लेते हुए।

कांवड़ यात्राओं को लेकर अधिकारी बैठक लेते हुए।

कांवड़ यात्राओं पर लगा प्रतिबंध

कोविड को लेकर शासन द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार जिले में कांवड़ यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। रविवार को ही प्रशासन व पुलिस अधिकारियों ने कांवड़ यात्रा समितियों संग बैठक कर शासन की गाइडलाइन से अवगत कराया। वहीं झंडा चढ़ाने की परंपरा पर निकाले जाने वाले जुलूस पर भी रोक लगा दी गई है। एडीएम हर्ष दीक्षित और एएसपी सिटी रोहित काशवानी व एएसपी साउथ गोपाल खांडेल ने कांवड़ यात्रा को लेकर संस्कार कांवड़ यात्रा के शिव यादव, विशाल तिवारी, भारत सिंह यादव आदि सदस्यों की मौजूदगी में बैठक कर शासन के आदेश से अवगत कराया। कहा गया कि कांवड़ यात्राओं पर पूर्णता प्रतिबंध रहेगा।

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