दुनिया के कद्दावर कद फिल्मकार जेम्स कैमरून की अवतार का पार्ट टू यानी ‘अवतार: द वे ऑफ वॉटर’ अब रिलीज से महज चंद दिन दूर हैं। जेम्स कैमरून ने खास बातचीत में इस फिल्म की मेकिंग से लेकर अपने अप्रोच के बारे में बात की है। जेम्स की यह फिल्म भारतीय दर्शन के मूल पंचतत्व से भी इंस्पायर्ड हैं। पहले पार्ट में उन्होंने गगन की दुनिया पेश की। अब वो जल की बात कर रहें हैं। तीसरे पार्ट में अग्नि का मुद्दा होगा। पेश हैं प्रमुख अंश:-
आपको किन चीजों की मदद से ग्रेट कहानियां मिलती हैं?
मुझे हर उन चीजों से स्टोरी आयडियाज मिलते हैं, जो हमें हासिल हैं। वह चाहें न्यूज हों या ट्रैवल या कुछ और। मैं दूसरी मूवीज भी देखता हूं। दशकों तक मैं रेनफॉरेस्ट यानी वर्षावन के क्षेत्रों में रहा हूं। इस फिल्म के लिए मैंने 52 साल डायविंग को दिए हैं। मैं इस वक्त 68 का हूं। मैं जब 16 साल का था, तबसे डायविंग सीख रहा हूं। फिल्म का 50 फीसदी हिस्सा अंडरवॉटर में शूट हुआ है। मैं लिटरली कह सकता हूं कि मेरे दिल और मेरी रूह में समंदर बसता है। इन सब चीजों से मुझे मेरी कहानियां मिलती हैं।
आपने किन नई तकनीकों का इस्तेमाल आपने किया है?
फिल्म की काफी शूटिंग अंडर वॉटर में हुई है। तो पानी के भीतर चीजों को शूट करने के लिए काफी नई तकनीकों का इस्तेमाल हुआ है। हालांकि, इस सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि अगर हमारे एक्टर्स ही उन तकनीकों से वाकिफ नहीं रहते। यहां हमारे किरदार ऐसे हैं , जो एयर ब्रीदर हैं। जैसे डॉल्फिन होते हैं, क्योंकि वैसी प्रजातियां कुछ हद तक जमीन तो काफी हद तक पानी में रहती हैं। तो हमारे एक्टर्स को ‘फ्री डायविंग’सीखनी पड़ी। हमें दुनियाभर से बेस्ट फ्री डायविंग इंस्ट्रक्टर मिले। मैं खुद पिछले 50 सालों से फ्री डायवर रहा हूं। हमारी एक्ट्रेस केट विंसलेट मुझसे ज्यादा समय तक पानी के भीतर सांस रोककर रख सकती है। तो हमारे एक्टर्स ने पानी के भीतर रहकर मूवमेंट करने की कला विकसित की।
आप इतने लंबे अरसे से क्यों एक ही प्रोजेक्ट पर बने रहे?
अवतार एक पूरी दुनिया है। ढेर सारे किरदार हैं इसमें। हजारों, लाखों क्रिएचर और अलग पर्यावरण भी इनहेरेंटली मौजूद हैं इनमें। तो मैं पांच सालों तक इन सब चीजों को क्रिएटिवली क्रिएट करने में लगातार जुटा रहा। उतना पूरा वक्त लगा रहा लाइव एक्शन शूट करने में। मैं पूरी तरह डूबा रहा हूं इसमें। एक बड़ा हिस्सा समुद्री संरक्षण को भी समर्पित रहा। तो उन पांच सालों में मैंने पांच से छह डौक्यूमैंटरी बनाई। इन सब के बीच बेशक मेरा पूरा समर्पण एक बिग स्क्रीन मूवी बनाने का रहा। लोग जब इसे देखेंगे तो उन्हें मेरी सालों की मेहनत नजर आएगी।
बतौर फिल्मकार आपको किन दवाबों से गुजरना पड़ा?
यही कि फिल्मकार फिल्म की ऑब्जेक्टिविटी यानी निष्पक्षता के साथ कैसे डटे रह पाते हैं? यह भी कि किसी फिल्म पर पांच सालों तक काम करते हुए क्या यह मुमकिन है कि आप का वही नजरिया उसकी थीम, कहानी, किरदार, घटनाक्रम पर कायम रहे, जो शुरू में था। एक और दबाव यह भी रहता है कि एक फिल्मकार की फिल्म तय समय पर कंप्लीट हो सके। हालांकि यह ऐसी फिल्म थी, जो जल्द से जल्द नहीं बन सकती थी। इस फिल्म में 3250 वीएफएक्स शॉट्स थे, जबकि टर्मिनेटर2 में महज 42 वीएफएक्स शॉट्स थे। बजट और डेडलाइन का प्रेशर तो था। बहरहाल, इन सब बातों के बावजूद इस तरह की जर्नी को अगर आप एन्ज्वॉय कर पाते हो तो यह बड़ी चीज है।