उनकी पत्नी पटना के बिहटा में मायके में रहते हुए सब्जी बेचने का काम करती थी। लोगों के चंदे से घर बना। उनका बेटा साधारण कार्यकर्ता है। एक पौत्र नेवी में हैं। ऐसी पारिवारिक स्थिति का कोई शख्स अगर चुनाव में खड़ा हो और जीतकर निकले तो आश्चर्य तो होगा लेकिन पहले यह इतना आश्चर्य जनक नहीं था। तब यह सब संभव था। 1989 में आरा लोकसभा क्षेत्र से तत्कालीन इंडियन पीपुल्स फ्रंट के टिकट पर सांसद बने रामेश्वर प्रसाद का जीवन इसी बात की मिसाल है। उनका कहना है कि पहले के समय में किसी भी दल में ऐसी परंपरा नहीं थी कि पैसे या बाहुबल के दम पर टिकट ले लिया जाए। अब तो ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे। दैनिक जागरण से बात करते हुए उन्होंने बताया कि ईडी व आयकर के छापे वाम दलों के नेताओं के यहां नहीं डाले जाते।
वाम राजनीति की बने थे पहचान
पटना के बिहटा श्रीरामपुर टोला में दो मंजिला साधारण से घर में रहने वाले रामेश्वर प्रसाद बिहार में किसी समय वाम राजनीति का बड़ा नाम थे। हालांकि अब दलीय राजनीति से वो दूर हो चुके हैं। वे कहते हैं कि पहले के नेताओं ने खुद व परिवार के लिए कुछ नहीं जोड़ा। देश के लिए लड़े।
नहीं लड़ना चाहते थे चुनाव
1989 में जब वे सांसद बने तब उनका चुनाव लड़ने का मन नहीं था। उस समय वे आरा के बड़हरा प्रखंड में कार्यकर्ता थे। वरिष्ठ नेताओं के दबाव में चुनाव लड़े। एक किस्सा उन्होंने बताया कि जब पटना के मनेर, पालीगंज, बड़हरा, आरा, संदेश व सहार प्रखंड के कुछ गांव लोकसभा क्षेत्र में शामिल थे। पार्टी ने एक जीप मुहैया कराई थी। इससे पूरे क्षेत्र में घूमते थे। एक दिन में करीब 20 सभाएं करते थे। कार्यकर्ताओं में उत्साह था। प्रचार दल के लिए गांव के घरों में ही खाना बन जाता था। बूथ पर बैठने के लिए एजेंट को पैसे नहीं देने पड़ते थे।
प्रचार के दौरान हमला
उस समय गरीब वोटर्स को डर रहता था कि मालिकों के क्षेत्र में कैसे वोट डालेंगे। एक दिन वे नथमलपुर में सभा के लिए आरा से जा रहे थे तब उन पर हमला हो गया। कुछ समर्थक उन्हें शिवपुर ले गए जहां वे रात भर छुपे रहे। उस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार बलिराम भगम को 27 हजार वोटों से हराया था।