नई दिल्ली : ‘मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है…’। उत्तर भारत की लोक परंपरा में चला आ रहा एक लोकप्रिय लोकगीत। अमिताभ बच्चन की 1981 में आई फिल्म लावारिस में इसकी नए कलेवर में पेशगी ने लोकप्रियता को और भी बढ़ा दिया। खैर, यहां बात इस लोकगीत जो बाद में मशहूर फिल्मी गीत बन गया कि नहीं होने जा रही। मामला ये है कि अपने बेबाक बयानों की वजह से चर्चित उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने ‘मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है’ के अंदाज में न्यायपालिका से सवाल किया है। सवाल उठाया है न्यायपालिका की शक्तियों पर। उन्होंने शुक्रवार को भोपाल में एक कार्यक्रम के दौरान सवाल उठाया कि कैसे भारत जैसे किसी लोकतंत्र में सीजेआई कार्यपालिका की नियुक्ति में शामिल हो सकते हैं। सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति प्रक्रिया में सीजेआई का क्या काम है? अब उपराष्ट्रपति ने भले ही सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति का जिक्र कर न्यायपालिका के रोल पर सवाल उठाया हो लेकिन अगले मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से पहले उनके बयान की अहमियत बढ़ जाती है।
उपराष्ट्रपति ने कहां बोला?
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने भारत जैसे लोकतंत्र में कार्यपालिका से जुड़ी नियुक्तियों में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की भागीदारी पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि ऐसे नियमों पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है। सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं को अपने अधिकार क्षेत्र में ही काम करना चाहिए।
भोपाल में नैशनल ज्युडिशियल एकडमी को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कार्यपालिका के मामलों में न्यायपालिका की भागीदारी को एक ‘संवैधानिक विरोधाभास’ बताया। उन्होंने कहा कि इसका समाधान जरूरी है ताकि हर संस्था अपने क्षेत्र में काम कर सके।
उपराष्ट्रपति ने कया कहा?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, ‘आपके मन में विचार जगाने के लिए, हमारे जैसे देश में या किसी भी लोकतंत्र में वैधानिक प्रावधान द्वारा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया CBI डायरेक्टर के चयन में कैसे हिस्सा ले सकते हैं? क्या इसका कोई कानूनी तर्क हो सकता है? मैं समझ सकता हूं कि वैधानिक प्रावधान इसलिए बना क्योंकि तत्कालीन कार्यपालिका ने न्यायिक फैसले के आगे घुटने टेक दिया। लेकिन अब पुनर्विचार का समय आ गया है। यह निश्चित रूप से लोकतंत्र के साथ मेल नहीं खाता।’