मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी ने बिजली के 2627 करोड़ रुपये के अंतर को पूरा करने के लिए दाम बढ़ाने की याचिका दायर की है। जिसके जवाब में विशेषज्ञों ने मप्र आयोग के पास भी दलील दी है कि ये नुकसान कंपनी ऐसे उपभोक्ता से वसूलना चाह रही है जो ईमानदारी से बिल भुगतान करते हैं। जबकि कंपनी 18 लाख ऐसे उपभोक्ताओं से नियत दाम ले रही है जबकि उनके द्वारा असल में बिजली की खपत कितनी हो रही है इसका कोई हिसाब किताब भी नहीं है। इस नुकसान की भरपाई आम जनता को करनी पड़ रही है।
पूर्व क्षेत्र कंपनी में अन्य दो बिजली वितरण कंपनी की तुलना में सबसे ज्यादा अमीटरीकृत बिजली उपभोक्ता है। बिजली मामलों के जानकार डी खंडेलवाल ने मप्र विद्युत नियामक आयोग में इस संबंध में आपत्ति की है। उनके अनुसार 2020-21 की वार्षिक याचिका में कंपनी ने बताया कि पूर्व क्षेत्र वितरण कंपनी में 21 लाख उपभोक्ता अमीटरीकृत है। जो 2021-22 की याचिका में 18 लाख होना बताई गई। इस अवधि में सिर्फ तीन लाख उपभोक्ताओं को मीटरीकृत किया गया है। इससे जाहिर है कि 18 लाख उपभोक्ताओं के बिजली खपत का कोई हिसाब किताब कंपनी के पास नहीं है। इससे उनकी खपत का वास्तविक आंकलन नहीं हो रहा है।
400 मेगावाट की डिमांड हो सरेंडर: डी खंडेलवाल ने मप्र विद्युत नियामक आयोग को भेजे पत्र में कहा कि नेशनल थर्मल पॉवर कर्पोरेशन (एनटीपीसी) अलग-अलग राज्यों को बिजली का हिस्सा देती है। मप्र के पास पर्याप्त बिजली है इसके बावजूद एनटीपीसी से 400 मेगावाट अतिरिक्त बिजली ली जा रही है। जिसका उपयोग नहीं हो रहा है। इसकी एवज में करोड़ों रुपये भुगतान करना पड़ रहा है। कंपनी को इस बिजली को सरेंडर करना चाहिए ताकि नुकसान की राशि कम की जा सके। इसके अलावा उच्च दरों पर हुए बिजली खरीदी के करार भी निरस्त किए जाए ताकि नुकसान कम हो। उन्होंने इसके अलावा 400 करोड़ रुपये की राशि का जिक्र किया जिसे मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी ने डूबत ऋृण में डाला है। आपत्तिकर्ता का कहना है कि इस राशि को किस मद से लिया गया है कहा से ये राशि वसूल नहीं हुई है इसका जिक्र किया जाए।