Kidney Swap: एमपी में पहली बार हुआ स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट, जानें कैसे दो महिलाओं ने बचाई एक-दूसरे की पति की जिंदगी

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इंदौर: एमपी की आर्थिक राजधानी इंदौर में एक अनोखा मामला सामने आया है, जहां दो महिलाओं ने अपने पतियों की जान बचाने के लिए एक-दूसरे के पति को किडनी दान की। यह मध्य प्रदेश में पहला इंटर हॉस्पिटल किडनी स्वैप ट्रांसप्लांट है। दोनों ट्रांसप्लांट एक ही समय पर अलग-अलग अस्पतालों में किए गए। SOTO (स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन) से इसकी विशेष अनुमति ली गई थी। यह घटना 29 नवंबर 2024 को हुई।

दोनों पुरुषों की हो गई थी किडनी खराब

इसमें एक 31 वर्षीय और एक 47 वर्षीय पुरुष शामिल थे, जिनकी किडनी ख़राब हो चुकी थी। उनकी पत्नियों का ब्लड ग्रुप उनसे मैच नहीं कर रहा था, इसलिए यह अनोखा उपाय अपनाया गया।


दोनों का बच गया सुहाग

इंदौर में दो परिवारों के लिए खुशी का मौका आया, जब उनकी किडनी की बीमारी से जूझ रहे सदस्यों को नया जीवनदान मिला। यह सब मुमकिन हुआ दो महिलाओं की अपने पतियों के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण से। उन्होंने एक दूसरे के पति को अपनी किडनी देकर एक मिसाल कायम की। यह मध्य प्रदेश में पहली बार हुआ है जब दो अलग-अलग अस्पतालों में एक साथ इंटर हॉस्पिटल किडनी स्वैप ट्रांसप्लांट किया गया।


ब्लड ग्रुप नहीं कर रहा था मैच

इसमें दो मरीज शामिल थे, एक 31 साल के और दूसरे 47 साल के। दोनों ही किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। 31 वर्षीय मरीज का ब्लड ग्रुप ‘A’ पॉजिटिव था जबकि उनकी पत्नी का ब्लड ग्रुप ‘B’ पॉजिटिव था। इसी तरह 47 वर्षीय मरीज की भी पत्नी का ब्लड ग्रुप उनसे मैच नहीं कर रहा था। इसलिए उनकी मां को डोनर बनाने की सोची गई पर बढ़ती उम्र के कारण डॉक्टरों ने उन्हें डोनर बनाने से मना कर दिया।


किडनी स्वैप ट्रांसप्लांट

ऐसे में एक अनोखा रास्ता निकाला गया, किडनी स्वैप। दोनों महिलाओं ने एक दूसरे के पति को अपनी किडनी दान करने का फैसला किया। यह एक जटिल प्रक्रिया थी जिसके लिए स्टेट आर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट आर्गनाइजेशन (SOTO) से विशेष अनुमति लेनी पड़ी। SOTO के प्रमुख डॉ संजय दीक्षित ने सभी दस्तावेजों और रिपोर्टों की जांच के बाद इसकी अनुमति दी। इसमें एक शर्त रखी गई कि दोनों अस्पतालों में ट्रांसप्लांट एक ही समय पर शुरू किए जाएं ताकि किसी भी तरह की परेशानी या विवाद से बचा जा सके।


एक ही समय में किडनी ट्रांसप्लांट

नेफ्रोलाजिस्ट डॉ संदीप सक्सेना और डॉ नेहा अग्रवाल ने इस पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया। उन्होंने बताया कि ट्रांसप्लांट के लिए SOTO से मंजूरी लेनी होती है। हमने रिपोर्ट और दस्तावेज SOTO के हेड डॉ. संजय दीक्षित के सामने प्रस्तुत किए। जांच करने के बाद हमें ट्रांसप्लांट की मंजूरी दी। शर्त थी कि दोनों अस्पतालों में एक साथ एक ही समय पर दोनों ट्रांसप्लांट शुरू करने होंगे, ताकि बाद में किसी तरह की परेशानी या विवाद न हो। हमने कोऑर्डिनेशन करते हुए एक ही समय पर सफलतापूर्वक यह ट्रांसप्लांट किया गया।


मेडिकल क्षेत्र में बड़ी कामयाबी

यह पूरा ऑपरेशन बड़ी ही सावधानी और नियोजन के साथ किया गया। दोनों अस्पतालों के डॉक्टरों ने आपस में तालमेल बिठाकर इस मुश्किल काम को अंजाम दिया। यह चिकित्सा क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी है और दोनों परिवारों के लिए एक नई शुरुआत। यह घटना दूसरों के लिए भी प्रेरणा का काम करेगी और अंगदान के महत्व को रेखांकित करेगी। यह दर्शाता है कि अगर इच्छाशक्ति हो तो मुश्किल से मुश्किल स्थिति में भी रास्ता निकाला जा सकता है। यह ऑपरेशन सिर्फ एक मेडिकल सफलता ही नहीं, बल्कि मानवीय रिश्तों, प्रेम और समर्पण की भी एक अनोखी कहानी है।

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