एक मां का आंचल अपनी संतान के लिए कभी छोटा नहीं पड़ता। मां का प्रेम अपनी संतान के लिए इतना गहरा और अटूट होता है कि उसकी खुशहाली के लिए सारी दुनिया से लड़ लेती है। कोरोना महामारी के भीषण दौर में अपनी संतान की रक्षा के लिए भी कई माताओं ने उल्लेखनीय कार्य किया है। बेटे या बेटी के इलाज की व्यवस्था में अपनी क्षमता से अधिक प्रयास कर उनके जीवन की रक्षा की है। मातृ दिवस पर हम दो ऐसी ही माताओं के संघर्ष की कहानी को साझा कर रहे हैं, जिन्होंने काल के गाल से अपनी संतान को निकाला है।
परिवार को बचाने के प्रयास में खुद हुई संक्रमण की शिकार
सोनागिरी निवासी विनीता नरवरिया (41) का संघर्ष विरला है। उनके पति चंडीगढ़ में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं और परिवार वहीं रह रहा था। गत पांच अप्रैल को उनकी कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो मकान मालिक ने घर से निकाल दिया। पति चूंकि शुगर और बीपी की समस्या से ग्रसित थे, इसलिए उनकी हालत नाजुक हो गई। अस्पताल में लंबे चले उपचार के बाद वे ठीक हो पाए और पूरा परिवार भोपाल आ गया। यहां आने पर बेटे उदय समेत परिवार के कई सदस्य कोरोना पॉजिटिव हो गए। विनीता ने खुद प्रयास कर बेटे के साथ ही अपनी मां, बहन और भाई को अस्पताल में भर्ती कराया। 18 वर्षीय बेटे उदय को इंफेक्शन ज्यादा होने की वजह तबीयत नाजुक थी। विनीता ने अपने प्रयास से आक्सीजन का प्रबंध किया और एक दिन में सौ-सौ फोन करके उसके लिए प्लाज्मा का इंतजाम किया। बेटा अभी समरधा स्थित प्रयास अस्पताल में खतरे से बाहर है। बहन, भाई भी ठीक हैं, लेकिन उनकी मां की दो दिन पूर्व मृत्यु हो गई है। बेटे समेत पूरे परिवार की देखरेख और भागदौड़ में विनीता स्वयं भी संक्रमण की शिकार हो गईं। वे घर में ही आइसोलेट हैं।
घर में आइसोलेट कर बेटी को दिलाई कोरोना से मुक्ति
गोविंद गार्डन में रहने वाली सरोज मेवारी के लिए 29 मार्च का दिन खुशियों भरा था, क्योंकि उस दिन उनकी लाडली आल्या 10 साल की होने वाली थी, लेकिन आल्या की तबीयत ठीक न होने के कारण जन्मदिन सादगी से मनाया गया। अगले दिन जांच रिपोर्ट में आल्या को कोविड-19 का माइल्ड इंफेक्शन निकला। सुल्तानिया जनाना अस्पताल में फार्मासिस्ट सरोज के लिए यह परीक्षा की घड़ी थी। उन्होंने बिना देरी किए डॉक्टर से संपर्क किया और आल्या को घर में आइसोलेट करने का निर्णय लिया। हालांकि टू बीएचके फ्लैट में यह आसान नहीं था। उन्होंने बेटी को एक कमरे में सीमित करते हुए सारी बात समझा दी। अस्पताल से छुट्टी लेकर स्वयं की देखरेख में कोविड प्रोटोकॉल, मेडिकल प्रिकॉशन, डाइट चार्ट का पूरा पालन कराया। इससे 14 दिन में ही आल्या स्वस्थ हो गई। इस प्रकार छोटी सी उम्र में आल्या ने कोरोना से डरे बिना उसका डटकर सामना किया और अपनी मां की सकारात्मक सोच और अनुशासन की बदौलत कोरोना पर विजय प्राप्त की।