अब 1945 नहीं रहा… एक चूक पड़ेगी भारी, भारत क्यों अहम.. UN को समझनी पड़ेगी ये बात

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संयुक्त राष्ट्र के ‘समिट ऑफ द फ्यूचर’ में दुनिया भर के संकटों पर चर्चा होने वाली है। यह कार्यक्रम ऐसे समय में आयोजित किया जा रहा है, जब वैश्विक व्यवस्था बिखर रही है। दुनिया का पुराना ढांचा अब बिखर रहा है। कई देश अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं, लेकिन कोई जवाबदेही नहीं है। यूक्रेन, गाजा और सूडान जैसे देशों में युद्ध से इंसानियत शर्मसार हो रही है। ऐसे समय में UN जैसे संगठन भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। ऐसे में इन 5 बड़े मुद्दों पर गंभीरता से विचार होना चाहिए।

गुटनिरपेक्षता का रास्ता आज भी प्रासंगिक: भारत हमेशा से ही आजाद और स्वतंत्र सोच रखता आया है। 1950 के दशक में भारत ने कोरियाई युद्ध को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बाद भारत ने गुटनिरपेक्षता के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए दुनिया को दो ध्रुवों में बंटने से रोकने की कोशिश की। आज एक बार फिर दुनिया दो खेमों में बंटती दिख रही है। भारत किसी भी खेमे में शामिल होता हुआ नहीं दिख रहा।

भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर UN में वोटिंग के दौरान किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं किया। इस वजह से कई विकासशील देशों को भी अपनी आवाज बुलंद करने की हिम्मत मिली। भारत ने साफ कर दिया कि युद्ध कोई हल नहीं है और बातचीत से ही शांति आएगी। आज भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो रूस और यूक्रेन को बातचीत की मेज पर ला सकता है।

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