इकोनॉमी ही नहीं इकोलॉजी का भी होगा खास संतुलन, यहां समझें

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सड़कों को इकोनॉमी और ग्रोथ के इंजन के तौर पर देखा जाता है, पर इनके निर्माण के दौरान बड़े पैमाने पर पर्यावरण और वाइल्ड लाइफ का नुकसान भी होता है, लेकिन दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे में मामला उल्टा है। ये एक्सप्रेस वे देश ही नहीं एशिया महाद्वीप का पहला और दुनिया का दूसरा एक्सप्रेस वे होगा, जहां वाइल्ड लाइफ हैबिटेट को बचाने के लिए अंडर पास से लेकर फ्लाई वे का निर्माण किया जाएगा। राजस्थान के रणथंबोर में और महाराष्ट्र के पास माथेरान एको सेंसेटिव जोन में 8 लेन की सुरंग बनाई गई है।

पर्यावरण और वन्यजीवों का खास ख्याल 

1350 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेस वे के बीच सोलर ऊर्जा से लाइटिंग और टोल प्लाजा का संचालन किया जाएगा। साथ ही प्रत्येक 500 मीटर पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग और कुल 2000+ वाटर रिचार्ज पॉइंट होंगे। एनिमल ओवर पास के लिए मुकुंदरा सेंट्यूरी और माथेरान एको जोन के लिए 8 लेन की सुरंग होगी। पहली बार 8 मीटर ऊंची दीवार का निर्माण होगा जिससे गाड़ियों की आवाज जंगल में ना जा पाए। नए एक्सप्रेस वे से 850 मिलियन किलोग्राम CO2 उत्सर्जन कम होगा, जो कि 40 मिलियन पेड़ लगाने के बराबर है। इस दौरान एलिमेंट के दौरान 10 हजार पेड़ो को बचाया है, 20 लाख नए पेड़ लगाए जाएंगे। 

रिकॉर्ड टाइम में मंजूरी से निर्माण तक 

पूरी परियोजना को मार्च 2018 में मंजूरी मिली। मार्च 2019 में भूमिपूजन किया गया। इसके साथ ही फर्स्ट फेज में 314 किलोमीटर मार्च 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य है। इसमें सोहना से दौसा और बड़ौदा से अलंकेश्वर तक शामिल होगा। दूसरा चरण नवंबर 2022 तक 250 किलोमीटर कोटा, रतलाम और झबुआ के बीच पूरा करने का टारगेट है। मार्च 2023 तक 1350 किलोमीटर पूरा करने का लक्ष्य है।

एक्सप्रेस वे के निर्माण का स्केल

कुल निर्माण में करीब 50 लाख मैन डेज, 19 हजार लोगों के लिए साल भर का काम के बराबर, वहीं 12 लाख टन स्टील की खपत है। साथ ही 35 करोड़ क्यूबिक मीटर अर्थ वर्क, 4 करोड़ ट्रक ट्रिप के बराबर वहीं 80 लाख टन सीमेंट, देश के कुल सालाना उत्पादन का 2 फीसद लगेगा। इस एक्सप्रेसवे को बनाने में कुल 98 हजार करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है।

ये एक्सप्रेसवे देश के छह राज्यों से गुजरेगा, जिसमें दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र शामिल हैं। इस एक्सप्रेसवे की वजह से जयपुर, किशनगढ़, अजमेर, कोटा, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, भोपाल, उज्जैन, इंदौर, अहमदाबाद और सूरत जैसे शहरों तक आना जाना आसान हो जाएगा। इसके साथ ही दिल्ली मे जेवर एयरपोर्ट से कनेक्टिविटी, मुंबई में जेएनपीटी से भी कनेक्टिविटी इकोनॉमी एक्टिविटी के लिहाज से बड़ा कदम होगा। 

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