कहानी सांची के स्तूप बनने और विध्वंस की:एक तहखाना खुलता है साल में सिर्फ एकबार

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मध्यप्रदेश में स्थित सांची का स्तूप, यूनेस्को की विश्व धरोहर में भी शामिल है। यहां रोजाना सैकड़ों लोग आते हैं। इस बात को कम ही लोग जानते हैं कि इस स्तूप परिसर में बने तहखाने में भगवान बुद्ध के दो शिष्यों की अस्थियां रखी हैं। इसमें बड़ा सा ताला भी लटका है। इसकी एक चाबी कलेक्टर, तो दूसरी महाबोधि सोसायटी के पास रहती है। महोत्सव के दौरान दोनों चाबियों को मिलाकर इसे खोला जाता है।

26 और 27 नवंबर को यहां दो दिवसीय सांची बौद्ध महोत्सव आयोजित किया जा रहा है। इस बार महोत्सव का 70वां साल है। इसमें शामिल होने के लिए दुनियाभर से लोग आएंगे। स्तूप की खोज से लेकर अब तक इसकी यात्रा में कई पड़ाव आए। खजाने को ढूंढने के लिए इसका विध्वंस भी किया गया, बाद में पुनर्निर्माण भी हुआ। दैनिक भास्कर आपको बता रहा है सांची स्तूप के बनने से लेकर अब तक की पूरी कहानी…।

पहले सांची स्तूप के बारे में जानते हैं…
बेतवा नदी किनारे बने सांची स्तूप रायसेन जिले में स्थित है। यह भोपाल से 46 तो विदिशा से 10 KM दूर है। तीसरी शताब्दी ईसा में मौर्य सम्राट अशोक ने सांची का मुख्य स्तूप बनवाया था। आज यहां छोटे-बड़े कई स्तूप हैं, जिनमें से स्तूप नंबर-2 सबसे बड़ा है। यह चारों ओर हरियाली से घिरा है। स्तूप नंबर-2 चारों ओर से कई तोरण द्वारों से घिरा है। स्तूप नंबर-1 के पास छोटे-छोटे अन्य कई स्तूप हैं।

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