कोरोना संक्रमण लिखने लगा पलायन की कहानियां, साक्षी बन रहा बायपास

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नवीन यादव, इंदौर Corona Migration Indore। 32 किलोमीटर लंबे बायपास पर इन दिनों महाराष्ट्र पासिंग वाहनों की आवाजाही अचानक बढ़ गई है। रोजाना सुबह और शाम को इनकी संख्या बढ़ जाती है। महाराष्ट्र के कोरोना के हाटस्पाट बनने के बाद वहां से प्रवासी मजदूरों की वापसी शुरू हो गई है। पिछली बार इंदौर ने जमकर सेवा की थी लेकिन इस बार पानी भी नसीब नहीं हो रहा है। कुछ खाना साथ में लेकर चले थे, जो खत्म हो गया। इस बार इंदौर में लाकडाउन के कारण खाना भी नहीं मिल रहा है।

शनिवार को जो प्रवासी मजदूर यहां से गुजरे, उनमें उत्तर प्रदेश के कानपुर, सुल्तानपुर, वाराणसी जैसे शहरों के मजदूर और उनके परिवार बड़ी संख्या में थे जो मुंबई में रह कर काम करते हैं। मजदूरों ने बताया कि मुंबई में कोरोना संक्रमण के मामले अचानक बढ़ने से सब कुछ बंद हो गया। ज्यादा देर न हो जाए, इसलिए लौट रहे हैं। बायपास पर अपनी काली-पीली टैक्सी का टायर बदल रहे सतीश मिश्रा ने बताया कि अभी फरवरी में ही इसी रास्ते से वापस मुंबई गए थे। पहले मन था कि इस बार गांव में ही रुकें, लेकिन पेट पालने के लिए मुंबई चले गए। दो माह में ही वापस जाना पड़ रहा है। शुक्रवार रात को मुंबई से निकले थे। लगातार चलते रहे तो रविवार रात तक वाराणसी पहुंच जाएंगे। इसी अपनी पत्नी और भाई को लेकर लौट रहे सुमित सिंह की कार में काफी सामान भरा हुआ था। सुमित ने बताया कि कल रात को निकले थे। अब आराम करके रात को फिर गाड़ी चला लेंगे। दिन में गर्मी में गाड़ी चलाना काफी परेशानी भरा है।

200 किलोमीटर धक्का दे रहे आटो कोटोल नाके से कूछ दूरी पर खड़े नाजिम खान कन्नौज के रहने वाले हैं। वे पत्नी, दो बच्चों और अपने दूसरे दोस्तों के साथ दो आटो में मुंबई से निकले। करीब 200 किलोमीटर पहले एक रिक्शा के इंजन में दिक्कत आ गई है। बायपास पर कोई सुधारने वाला नहीं मिला तो दूसरे रिक्शा से उसे धक्का देकर चला रहे थे। नाजिम ने बताया कि दीपावली के बाद परिवार के साथ वहां गए थे। पता नहीं था कि ऐसे फिर लौटना पड़ेगा। पिछले साल अप्रैल में जब लौटे थे तो इंदौर के लोगों ने काफी सेवा की थी। खाना खिलाने के साथ बांधकर भी दे दिया था जो पूरे रास्ते काम आ गया था। इस बार पानी की भी परेशानी है। 8 लोगों के लिए कितना पानी खरीद के पिएंगे।

होटल बंद हुए तो खाने की दिक्कत हो गईआसिफ खान, करण मिश्रा, नीरज मिश्रा, अफरोज अहमद चारों दोस्त हैं। नवी मुंबई की एक होटल में 10-10 हजार रुपये महीने की पगार पर नौकरी करते हैं। होटल में टेक अवे चालू था तो काम चल रहा था। बुधवार को मालिक ने होटल फिर बंद कर दी। तब गुरुवार को अपनी बाइकों से सुल्तानपुर के पास स्थित अपने गांव के लिए निकले हैं। लंबी दूरी तक बाइक चलाने की आदत नहीं है। रुकते-रुकते आ रहे हैं। ढाबे वाले खाना पैक कर देते हैं लेकिन खाने नहीं देते हैं। रास्ते में एक बाइक भी खराब हो गई थी। पेट्रोल में भी खूब पैसा लग रहा है, लेकिन अब मुंबई में रह कर करेंगे भी क्या? यही सोच कर निकल पड़े।

रोजी-रोटी छूटी तो घर लौटना मजबूरी

सुल्तानपुर (उप्र) के रहने वाले रिक्शा चालक मोहम्मद असलम ने बताया कि अनलाक होने पर कुछ दिनों पहले ही मुंबई लौटा था। पत्नी और बच्चों को लेकर नहीं ले गया क्योंकि अभी भी कोरोना खत्म नहीं हुआ था। रिक्शा चलाकर 4 हजार रुपये रोज कमाने वाला असलम कोरोना फैलने के बाद पचास रुपये भी मुश्किल से घर ले जा पा रहा था। इसलिए उसने घर लौटने का मन बनाया और रिश्तेदार साहिल, निसार, जिशान, सिराज के साथ सुल्तानपुर के लिए रवाना हो गया।

जिशान के मुताबिक पिछली बार भी ऐसे ही दिन देखने को मिले थे। उस समय तो हमें साधन तक नहीं मिला और ट्रक में बैठ कर जाना पड़ा। इस बार हम खुद के आटो से ही घर लौट रहे हैं। शुक्रवार को शाम चार बजे ठाणे से निकले असलम और उनके साथियों ने खाना भी बांध लिया था। जहां जगह दिखी, वहां खाना खाया और बारी-बारी से रिक्शा चला रहे हैं। वहीं सिराज बताते हैं कि सड़क खाली मिली तो रविवार दोपहर कर घर पहुंच जाएंगे। जाम लगने और रिक्शा रुकने पर रात भी हो सकती है।

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