स्कूल शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश शासन भोपाल द्वारा बालाघाट जिले की प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी आर के लटारे पर निलंबन जैसी कार्यवाही की गई। जिसके बाद कई सवाल उठने लगे कि क्या इस पूरी कार्रवाई के दौरान केवल जिला शिक्षा अधिकारी आर के लटारे ही दोषी थे, या फिर उनके कार्यालय में चल रहा अंधेर नगरी चौपट राजा जैसा काम में बाबू वर्ग भी शामिल था।
मध्यप्रदेश शासन द्वारा प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी श्री लटारे पर कार्यवाही के बाद अब कानाफूसी यही चल रही है कि बाबूओ ने गलत जानकारी प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी साहब को दी, जो उनके द्वारा वरिष्ठ स्तर पर प्रेषित कर दी गई और कार्यवाही केवल साहब के ऊपर ही क्यों? दोषी बाबूओ पर क्यों नहीं? क्योंकि जिला शिक्षा अधिकारी का काम तो केवल वरिष्ठ स्तर से आए आदेश को निर्देश में बदलना और उस आदेश का पालन करते हुए पूछे गए सवालों का जवाब देना है।
जिस जवाब को बाबू तैयार करते है फिर पूरी गलती तो बाबू वर्ग ने की थी और भुगतना अकेले जिला प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी को पड़ रहा है, तो क्या शासन आगामी दिनों में इस पूरे पटाक्षेप का दूध का दूध और पानी का पानी करेगा और अन्य दोषियों पर भी कार्रवाई करेगा।
गलती बालाघाट जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में हुई है जिसकी जानकारी दूर तलक भोपाल तक पहुंच गई। और वहां से कार्रवाई का लेटर भी आ गया।
विभागीय सूत्रों और पूर्व में इस विभाग से जुड़े रहे लोगो से मिल रही जानकारी के अनुसार जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में बीते कई वर्षों से अंधेर नगरी चौपट राजा जैसे कार्य चल रहे हैं। तभी तो वरिष्ठ स्तर से मिलने वाले आदेश को हवा करते हुए अपने आदेश दिए जाते हैं। जिस कारण मैदानी स्तर पर उसका भुगतमान शिक्षकों को भुगतना पड़ता है।
पूरा मामला शिक्षकों के स्थानांतरण से जुड़ा हुआ है जिसकी गलत जानकारी दी गई थी आपको बता दें कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्य द्वारा 99 फ़ीसदी बार सही जानकारी नहीं दी जाती जिसका बड़ा कारण वर्षों से कार्यालय में जमे हुए बाबू है।
जिले में आज भी सैकड़ों स्कूलों में शिक्षकों के पद खाली है बावजूद इसके पोर्टल में गलत जानकारी दी जाती है कि शिक्षकों के पद नहीं है दूसरी और स्थानीय स्तर पर प्रचार्य अतिथियों की भर्ती करते हैं। हालात यहां तक ही नहीं इससे भी अधिक खराब है।
बीते वर्ष शेष अतिशेष का जो खेल जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में चला उसके तो ऐसे दर्जनों उदाहरण शिक्षा विभाग ने पेश किए हैं जिसमें भ्रष्टाचार के स्पष्ट प्रमाण दिखाई देते हैं।
शिक्षकों को स्कूल आवंटन के दौरान चढ़ोत्तरी देने वाले शिक्षकों को मनमर्जी से स्कूल मिल गए इस दौरान इस बात का कहीं भी ध्यान नहीं रखा गया कि चढ़ोत्तरी देने वाला शिक्षक बिना चढ़ोत्तरी देने वाले शिक्षक से कई वर्ष जूनियर है।
यही नहीं ऐसे दर्जनों प्राथमिकताएं बिना चढ़ोत्तरी देने वाले शिक्षकों के पास थी लेकिन कहते हैं ना बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया यही खेल शिक्षा विभाग बालाघाट में चलता रहा।
नतीजा आज पूरे शिक्षा विभाग का सिस्टम कोलैप्स होता दिखाई देता है। जब एक स्थान पर कुछ विषय शिक्षक अतिशेष होते हैं। उसी स्थान पर कुछ अन्य उसी विषय के शिक्षकों को स्थानांतरित कर दिया जाता है, और वह विषय शिक्षक अपने विषय से अलग हटकर दूसरे विषय की पढ़ाई करवाता है।
यह हालात वर्षों से बालाघाट जिले के भीतर शिक्षा विभाग में बने हुए हैं इसका बड़ा नतीजा यह है कि जिले के भीतर बीते लगभग 10 वर्ष के कार्यकाल के दौरान प्रभारियों के भरोसे जिला शिक्षा विभाग की नैया चल रही है। इस दौरान प्रभारी कौन बनेगा उसके पीछे भी बड़ी खींचतान और प्रतिस्पर्धा होते दिखाई दी है।
क्योंकि प्रभारियों को यदि पद के विपरीत बड़ा पद चाहिए तो उन्हें भी चढ़ोत्तरी देने ही होती है। नतीजा पूरा विभाग ही चढ़ोत्तरी देकर का कारखाना बन गया है। इसलिए तो नियम जाए कचरे की टोकरी में। जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के अंधेर नगरी चौपट राजा जैसे हालत बन गए है।