क्‍या थिएटर्स में देखनी चाह‍िए अम‍िताभ बच्‍चन, इमरान हाशमी की चेहरे

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कोरोना खतरे के बीच जो भी थ‍िएटर्स खुले हैं, उनमें र‍िलीज होने वाली दूसरी फ‍िल्‍म है चेहरे। इससे पहले अक्षय कुमार की बेल बॉटम र‍िलीज हुई थी ज‍िसको अपेक्ष‍ित र‍िस्‍पॉन्‍स नहीं म‍िला है। जब बेल बॉटम को जोरदार कलेक्‍शन नहीं म‍िले, तो चेहरे को लेकर शंक‍ित होना स्‍वाभाव‍िक है। मगर कोई जोरदार फ‍िल्‍म दर्शकों को वापस खींच कर ला सकती है, तो क्‍या चेहरे में वो बात है क‍ि दर्शक ट‍िकट खरीदने के ल‍िए लाइन लगा दें। 

कैसी है चेहरे की कहानी 

चेहरे एक थ्र‍िलर है ज‍िसमें कोर्ट रूम ड्रामा द‍िखाया गया है। द‍िल्‍ली की एक एड एजेंसी का हेड समीर मेहरा यानी इमरान हाशमी खराब मौसम के चलते एक घर में पनाह लेता है। जहां उसकी मुलाकात 4 बुजुर्गों – पब्‍ल‍िक प्रोसीक्‍यूटर अमिताभ बच्‍चन, ड‍िफेंस लॉयर अन्‍नू कपूर, धृतमान चटर्जी जज और रघुबीर यादव प्रॉसिक्यूटर हरिया जाटव की भूमिका में हैं। ये सभी इमरान को एक मॉक ड्र‍िल में शामिल करते हैं और उस पर अपने बॉस की हत्‍या कर एजेंसी हथियाने का आरोप लगाते हैं। तो क्‍या इमरान सच में कात‍िल न‍िकलते हैं – यही फ‍िल्‍म की कहानी है। 

देखें चेहरे मूवी का र‍िव्‍यू 

न‍िर्देशन रूमी जाफरी ने चेहरे में अच्‍छे कलाकारों को चुना है लेक‍िन खराब स्‍क्र‍िप्‍ट ने सभी की मेहनत पर पानी फेर द‍िया। पता नहीं ऐसा क्‍यों है क‍ि अच्‍छा काम जानने के बावजूद इमरान लगातार हल्‍की कहान‍ियों का श‍िकार होकर साइडलाइन हो जाते हैं। अमिताभ बच्‍चन के साथ म‍िलकर उन्‍होंने प‍िंक और बदला के थ्र‍िल को दोहराने की कोश‍िश जरूर की है लेक‍िन राइट‍िंग और एड‍िट‍िंग खराब होने की वजह से उनके प्रयास व‍िफल रहे। 

सुशांत स‍िंह राजपूत के न‍िधन के बाद व‍िवाद में फंसी र‍िया चक्रवर्ती ने चेहरे के साथ पर्दे पर वापसी की है। उनको स्‍क्रीन स्‍पेस तो मिला है लेक‍िन फ‍िल्‍म में उनके करने के ल‍िए ऐसा कुछ नहीं है क‍ि इससे ज्‍यादा र‍िव्‍यू में उनके ज‍िक्र क‍िया जाए। 

फ‍िल्‍म के डायलॉग अच्‍छे हैं, लेक‍िन तारीख पे तारीख नहीं तुरंत फैसले का कॉन्‍सेप्‍ट उतना व‍िश्‍वसनीय नहीं लगता है। बात भले ही फास्‍ट ट्रैक की हो लेक‍िन शुरुआत में द‍िलचस्‍प लगने वाली कहानी कुछ देर में इतनी बोझ‍िल हो जाती है क‍ि वेब सीरीज को एंजॉय करने वाले दर्शकों को चेहरे को दो घंटे तक लगातार बैठ कर देखना उबाऊ लगेगा। फ‍िल्‍म का थ्र‍िल कमजोर कहानी और तर्क सही न होने की वजह से हल्‍का पड़ गया है। 

कई बार कमजोर फ‍िल्‍म को कोई एक अच्‍छा गाना भी चर्चा में ला देता है। लेक‍िन इस पॉइंट पर भी चेहरे के साथ न्‍याय नहीं हुआ है। 

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