खेतों की नरवाई जलाने पर जिलेभर में रोक लगा दी गई है। सार्वजनिक संपत्ति, पर्यावरण की सुरक्षा व लोक व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से कलेक्टर कर्मवीर शर्मा ने धारा 144 के तहत जिले की सीमा में गेहूं, धान एवं अन्य फसलों के डंठल, नरवाई को जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। कलेक्टर ने कहा कि नरवाई में आग लगाना कृषि के लिए नुकसानदायक होने के साथ पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है। इसके कारण विगत वर्षों में गंभीर अग्नि दुर्घटनाएं सामने आईं। हादसों के कारण कानून व्यवस्था के लिए विपरीत परिस्थितियां निर्मित होती हैं। उन्होंने कहा कि नरवाई एवं धान का पैरा जलाने पर खेत की आग के अनियंत्रित होने का खतरा रहता है। इससे प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव जंतु आदि नष्ट हो जाते हैं, जिससे व्यापक नुकसान होता है। खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु नष्ट होने के कारण खेतों की उर्वरा शक्ति घटती है जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। जबकि खेत में पड़ा कचरा, भूसा डंठल आदि सड़ने के बाद भूमि को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाते हैं।
मवेशियों के चारे का संकट : कलेक्टर ने कहा कि गेहूं एवं धान की फसल कटाई में हार्वेस्टर का चलन बढ़ा है। कटाई उपरांत बची नरवाई से भूसा बनाकर मवेशियों के चारे का संकट दूर किया जा सकता है। इसी तरह धान का पैरा भी मवेशियों के चारे के लिए उपयोगी होता है। उन्होंने कहा कि आदेश का उल्लंघन भारतीय दंड विधान की धारा 188 के अंतर्गत दंडनीय होगा।
उत्पादन होता है प्रभावित : इधर, उपसंचालक कृषि एसके निगम ने बताया कि फसलों की कटाई के बाद अवशेषों को रोटावेटर व कृषि यंत्रों के माध्यम से जुताई कर खेत में मिलाकर खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है। जबकि नरवाई जलाने पर उत्पादन पर विपरीत असर पड़ता है।