देश के लगभग हर शहर में ब्रिटिश जमाने के बने हुए घंटाघर आज भी मौजूद हैं। कभी ये शहरों की शान हुआ करते थे, लेकिन आज जर्जर हो चुके हैं। ब्रिटिश शासन काल में शहरों का केंद्र ये घंटाघर ही हुआ करते थे। यहां घड़ी में समय के साथ सुईयां घूमती। लोग घंटाकर पर लटकी बड़ी सी घड़ी में समय देखते। इसी के अनुसार अंग्रेजी अधिकारियों और कर्मचारियों की शिफ्ट चेंज होती। ये ऐतिहासिक घंटाघर पुराने जमाने की याद दिलाते हैं और राह चलने वालों को रुक कर थोड़ा सोचने का मौका देते हैं। कोलकाता में इन पुराने घंटाघरों को फिर से जीवंत किया जा रहा है। पुरानी यादें वापस लौट रही हैं। लोग घंटाघरों की उस सदियों पुरानी आवाज को सुन पा रहे हैं।
एक दशक बाद गूंजी घंटाघर की गूंज
हाल ही में एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी कोलकाता के सेंट एंड्रयूज चर्च के पास रुका, जो सफेद संगमरमर से बना हुआ है। वहां उसे एक जाना-पहचाना शोर सुनाई दिया। दस सालों से बंद पड़ी घंटाघर की गूंज पूरे डलहौजी स्क्वायर में गूंज रही थी। ये घड़ी 1835 में लंदन के जेम्स मैककेबे रॉयल एक्सचेंज द्वारा बनाई गई थी। उसने कहा, ‘बहुत सालों बाद ये आवाज सुनने को मिली।’ ये घंटाघर फिर से चलने लगे हैं, मगर इनकी मरम्मत में काफी खर्चा आता है, करीब 3 लाख रुपये एक घंटाघर के लिए! इस खर्च को पूरा करने के लिए लोगों ने मिलकर चंदा इकट्ठा किया।
दस साल से ज्यादा समय से ये घड़ी बंद पड़ी थी, इसकी खामोशी शहर की रोजमर्रा की जिंदगी के उलट थी जो कभी रुकती नहीं। लेकिन ‘कोलकाता रेस्टोरर्स’ नाम के एक ग्रुप की बदौलत, जिसमें शहर के लिए प्यार करने वाले लोग शामिल हैं, ये घड़ी अब फिर से चलने लगी है और इस ऐतिहासिक इलाके की खूबसूरती में चार चांद लगा रही है।
कोलकाला रेस्टोरर्स ने उठाया पुरानी यादों का ताजा करने का बीड़ा
कोलकाता रेस्टोरर्स ने घड़ियों को फिर से चालू करने के लिए एक्सपर्ट स्वपन दत्ता और उनके बेटे सत्यजित को बुलाया है। ये दोनों मिलकर एक-एक कर के बंद पड़ी घड़ियों को ठीक कर रहे हैं। पिता-पुत्र की जोड़ी कई प्रसिद्ध घड़ियों की देखभाल करती है, जिनमें से एक हरिद्वार में हर की पौड़ी के पास गंगा के किनारे लगी 1938 की घड़ी भी शामिल है। दूसरी घड़ी, जो 161 साल पहले कपूरथला के गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में महाराजा जगत सिंह द्वारा लगवाई गई थी, उनकी मेहनत से आज भी चल रही है। वो पटना सचिवालय में लगी 1924 की घड़ी को भी दुरुस्त रखते हैं।