दृष्टिहीन दम्पति ने मदर ड़े पर अपनी सुनाई दास्तान

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मां शब्द के साथ कई भावनाएं जुड़ी होती हैं। एक बच्चे के लिए उसकी मां की क्या अहमियत होती है, इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।मां के त्याग और योदान को चुकाने की कोई कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें,लेकिन ऐसा करना नामुमकिन है। इसलिए उनके त्याग और उनके सभी योगदानों को सम्मानित करने के लिए हर साल मई के दूसरे रविवार को मदर्स ड़े मनाया जाता है। इस दिन सिर्फ मां को नहीं बल्कि, हर उस महिला को धन्यवाद दिया जाता है, जो अपने बच्चे के जीवन में मां की भूमिका निभाती हैं। उसके ख्याल के साथ साथ उसकी चिंता करती हैं।मां बिना किसी स्वार्थ और चाह के अपना पूरा जीवन अपने बच्चों को समर्पित कर देती है। मां चाहे होम मेकर हो या कोई वर्किंग वुमन हो, वह हमेशा अपने बच्चे की चिंता में लगी रहती है। वे हर स्थिति में अपने बच्चे को पहली प्राथमिकता देती हैं। वे ये सभी काम अपने बच्चों के प्रति प्यार के कारण करती हैं और बदले में कुछ नहीं मांगतीं। मा को समर्पित यह दिन आज 12 मई को मदर ड़े मातृ दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

घर में गूंजी किलकारी तो परिवार में छाई खुशियां
मदर्स-डे पर हमने भी पहली बार मां बनने वाली महिलाओं से उनके अनुभव जाने। जिन्होंने अपनी दास्तान बयान करते हुए अपने अनुभव साझा किए।इस दौरान महिलाओं ने बताया घर में किलकारी गूंजी तो मां ही नहीं बल्कि पूरा परिवार खुशियों से झूम उठा। मां बनने का सपना हर किसी महिला का होता है। मां बनने के बाद उन्हें मातृत्व का एहसास होने लगता है। नन्हे शिशु के प्रति मां के साथ-साथ सभी का प्रेम, दुलार देखकर हर गम भूल जाते हैं। विपरित परिस्थिति में मां बनकर उन्हें जो खुशी मिली है, उसे वे शब्दों में बयां नहीं कर सकती। परिवार में नए शिशु के आगमन से जहां उनका अकेला पन दूर हुआ। वहीं सारे गम कुछ पल के लिए भी खत्म हो जाते हैं। बच्चे के साथ खेलते-खेलते, दुलार करते-करते दुख, दर्द और तकलीफें सभी कम लगने लगते हैं।

मां बनते ही मिली सबसे बड़ी खुशी- शिल्पा
नगर के वार्ड क्रमांक 1 बूढ़ी निवासी शिल्पा नामदेव ने बताया कि उनका जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। वह स्वयं 40 प्रतिशत दृष्टिहीन है। जबकि उनके पति अमन नामदेव 100 प्रतिशत दृष्टिहीन है। दोनों दृष्टिहीन होने के चलते उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। परिजनों की समझाइश के बाद उन्होंने एक बेबी प्लान किया। इसके लिए काफी विचार-विमर्श किया।इसके बाद उन्होंने एक बालक को जन्म दिया। माता-पिता के लाड-प्यार में अब बालक औसम नामदेव तीन वर्ष का हो चुका है। शिल्पा का कहना है कि अब उसके आगे की परवरिश को लेकर काफी चिंता हो रही है। खासतौर पर बच्चे की शिक्षा के लिए चिंता बनी रहती है। उनके पास आवक के साधन नहीं है। परिवार का गुजर-बसर काफी मुश्किलों से हो रहा है।

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