19 अप्रैल से लोकसभा चुनावों के लिए मतदान शुरू हो रहा है। इससे पहले पर्यावरण पर देश भर में काम करने वाले 70 से अधिक संगठनों ने वोटरों से अपील की है। उन्होंने कहा कि भविष्य, साफ हवा और पानी के लिए वोट करें। अपील करते हुए इन संगठनों ने कहा है कि देश इस समय ग्लोबल वॉर्मिंग, जलवायु परिवर्तन, जल संकट, बारिश की कमी और अधिकता, ग्लेशियरों का पिघलना और प्रदूषण का सामना कर रहा है। हाल में ही में आई रिपोर्ट से पता चलता है कि देश की स्थिति पर्यावरण, बदलते मौसम के लिहाज से बदतर होती जा रही है। हवा लगातार खराब हो रही है, ग्रीन हाउस उत्सर्जन बढ़ रहा है, भूजल में कमी आ रही है, नदियां प्रदूषित और सूखती जा रही हैं, कूड़े के पहाड़ बढ़ रहे हैं। इन संगठनों में पीपल फॉर अरावली, यूथ फॉर हिमालय, क्लाइमेट फ्रंट, उत्तराखंड का वन गुज्जर ट्राइबल युवा संगठन, महाराष्ट्र का अजनी वन बचाओ, मध्य प्रदेश का बरगी बंद विस्थापित एवं प्रभावित संघ, बिहार का जन विकास शक्ति संगठन, उत्तर प्रदेश की रॉबिनहुड आर्मी, झारखंड किसान परिषद, लद्दाख बचाओ, हिमाचल प्रदेश का एन्डेनजर्ड हिमालय, अखिल भारतीय भारत जल पोर्टल जैसे 70 से अधिक संगठन शामिल हैं।
जनविरोध के बावजूद कमजोर हुए कानून
इनका कहना है कि कुछ सालों के दौरान भारत में पर्यावरण और प्रकृति की रक्षा करने वाले कई महत्वपूर्ण कानूनों को जनविरोध के बावजूद बदलाव कर कमजोर किया गया है। हिमालय और अरावली के जंगल, नदियां, पहाड़ और रेगिस्तान के अलावा मध्य और पूर्वी भारत में हसदेव वन और अन्य, निकोबार द्वीप समूह और पश्चिमी घाट में वर्षावनों का दोहन बढ़ता जा रहा है। यह दोहन बांध परियोजनाओं, कोयला खनन, पत्थर और रेत खनन और रियल इस्टेट के लिए किया जा रहा है। 70 प्रतिशत भूजल स्रोत सूख चुके हैं। इनके रिचार्ज होने की क्षमता 10 प्रतिशत कम हो गई है। चेन्नै, बेंगलुरू जैसे शहर पानी की कमी से जूझ रहे हैं। आईक्यू एयर की रिपोर्ट ने देश को तीसरा सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया है। दुनिया के 50 प्रदूषित शहरों में 42 भारत के हैं।
राजनीतिक पार्टियों से मांग
पर्यावरण और वन अधिनियमों जैसे वन संरक्षण संशोधन आदि को बदला जाना। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, जैव विविधता अधिनियम, वन अधिकार कानून, मूलवासी समुदायों के अधिकारों को बनाए रखने वाले सभी कानूनों का पूर्ण रूप से लागू करना। सभी वेटलैंड को का वेटलैंड रूल्स 2010 के तहत नोटिफाई करना।