बारिश की शुरुआत होते ही जिले के भीतर खरीफ की फसल धान की बुवाई और रोपाई का काम शुरू हो गया। इसके साथ ही किसानों को अपनी फसल के उत्पादन बढ़ाने के लिए डीएपी यूरिया सहित अन्य खाद की जरूरत पड़ने लगी। वहीं दूसरी ओर बीते वर्ष की तरह इस बार भी जिले में डीएपी की किल्लत दिखाई दे रही है।
जिलेभर के किसान डीएपी खाद के लिए दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर है लेकिन किसानों को शासन प्रशासन द्वारा डीएपी खाद उपलब्ध नहीं कराई जा रही है जिसके चलते किसान रोजाना ही सोसाइटी के चक्कर काटने को मजबूर है।
किसानों को खाद न मिलने की प्रमुख वजह सरकार की नई नीति बताई जा रही है नई नीति के अनुसार सरकार ने सभी सेवा सहकारी समितियों को पीओएस मशीन के माध्यम से डीएपी खाद देने के आदेश दिए हैं जो किसानों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं है।
आपको बताएं कि पूर्व में डीएपी खाद के दाम 1200 से बढ़ाकर 1950 रुपए किए गए थे जिसको लेकर सरकार को किसानों का भारी विरोध झेलना पड़ा था किसानों के आक्रोश को देखते हुए सरकार ने खाद के मूल्य का अंतर स्वयं वहन करने को कहा था,वही खाद 1950 की जगह 1200 रु में सब्सिडी के तौर पर देने की घोषणा खूब वाहवाही लूटी थी। ऐसे में यदि किसान डीएपी खाद सिर्फ एक बोरी 1200रुपए में खरीदते हैं तो प्रत्येक बोरी के पीछे 700 से 750 रु केंद्र सरकार को वहन करने पड़ रहे हैं जिसके चलते सरकार जानबूझकर मांग के अनुरूप डीएपी उपलब्ध नहीं करा रही है। वही विभिन्न सोसाइटी में डीएपी उपलब्ध कराने पर भी नए नए नियम लादकर ,डीएपी के उठाओ में अड़ंगा लगाया जा रहा है