महामारी ने बदल दी दशकों की परम्परा, ग्रीष्मावकाश के पहले नहीं बाद में हो रहे चुनाव

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कुलदीप भावसार, इंदौर Indore Advocates Association Elections। कोरोना महामारी ने सिर्फ लोगों की जीवन शैली पर ही असर नहीं डाला बल्कि दशकों से चली आ रही कई परंपराओं को भी बदलकर रख दिया है। ऐसी ही एक परंपरा थी इंदौर अभिभाषक संघ के वार्षिक चुनाव। सालों से यह चुनाव न्यायालयों में ग्रीष्मावकाश लगने से ठीक पहले कराने की परंपरा रही है। शायद ही इसमें कभी कोई चूक हुई हो लेकिन इस बार यह परंपरा बदलने जा रही है। ग्रीष्मावकाश शुरू होने के पहले नहीं बल्कि समाप्त होने के बाद चुनाव हो रहे हैं। निर्वाचित होने वाली कार्यकारिणी का कार्यकाल एक साल का रहेगा। यानी यह तो तय है कि अगले साल भी चुनाव ग्रीष्मावकाश लगने से पहले नहीं हो सकेंगे।

इंदौर अभिभाषक संघ का गठन 110 साल पहले 1911 में हुआ था। हर वर्ष ग्रीष्मावकाश शुरू होने से ठीक पहले इसके वार्षिक चुनाव होते थे लेकिन इस बार चुनाव 21 सितंबर को होने जा रहे हैं। संभावित प्रत्याशियों ने प्रचार शुरू कर दिया है। कुछ वर्ष पहले तक वकील जिला न्यायालय और हाई कोर्ट बार एसोसिएशन दोनों जगह मतदान कर सकते थे लेकिन वन बार वन वोट सिस्टम लागू होने के बाद वकील दोनों में से किसी एक जगह चुनाव में हिस्सेदारी कर सकते हैं।

वरिष्ठ अभिभाषकों के मुताबिक किसी समय ये चुनाव बहुत ही शांत माहौल में होते थे। कई बार आपसी सहमति से भी कार्यकारिणी गठित हो जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब जोरशोर से प्रचार होने लगा है। प्रत्याशी समर्थकों के साथ मतदाताओं के घरों तक गुहार लगाने लगे हैं। चुनाव जीतने के बाद न्यायालय परिसर में जुलूस, ढोल ढमाके देखने को मिलते हैं।

बदलने जा रही है परंपरा

दशकों पुरानी परंपरा इस बार बदलने जा रही है। महामारी की वजह से चुनाव ग्रीष्मावकाश शुरू होने से पहले नहीं हो सके। अब राज्य अधिवक्ता परिषद ने सभी संघों से 30 सितंबर से पहले चुनाव संपन्न कराने को कहा है। निर्वाचित होने वाली कार्यकारिणी का कार्यकाल एक साल होगा।

– एडवोकेट कमल गुप्ता, संयोजक तदर्थ समिति

ग्रीष्मावकाश में बनाते थे वकीलों के हित की योजनाएं

ग्रीष्मावकाश के ठीक पहले चुनाव कराने से चुने गए पदाधिकारियों को अगले एक साल की कार्ययोजना बनाने का समय मिल जाता था। ग्रीष्मावकाश के दौरान काम का दबाव नहीं रहता। ऐसे में पदाधिकारी निवृत्तमान पदाधिकारियों और वरिष्ठों से जानकारी और सलाह दोनों आसानी से मिल जाती थी। इस बार यह परंपरा टूट रही है।

-संजय मेहरा, वरिष्ठ सदस्य अभिभाषक संघ

पांच दशक से मैं खुद साक्षी हूं

संघ के चुनाव ग्रीष्मावकाश से पहले ही होते थे। 100 साल से यही परंपरा चल रही है। मैं खुद पचास साल से इसे देख रहा हूं। इस बार यह परंपरा टूटने जा रही है।

– दिलीप सिसौदिया, वरिष्ठ अभिभाषक

दशकों पुरानी परंपरा है

ग्रीष्मावकाश के पहले वार्षिक परंपरा दशकों पुरानी है। मैं खुद पिछले करीब छह दशक से इस परंपरा को देख रहा हूं। शुरुआती दौर में तो मतदान की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। आपसी सहमति से ही कार्यकारिणी तय हो जाती थी। जैसे-जैसे सदस्य संख्या बढ़ती गई मतदान होने लगा।

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