बुधवार को नईसड़क स्थित चंपाबाग धर्मशाला में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने कहा कि तप के बिना लौकिक कार्य की सिद्धि नहीं होती है। जिस प्रकार धूप में फल पकते हैं तो उसमें मिठास आ जाती है। मिट्टी तपकर कलश बन जाती है, रोटी तपकर स्वादिष्ट हो जाती है, बीज अपना अस्तित्व खोकर वट वृक्ष का रूप ले लेता है, स्वर्ण अग्नि में तपकर शुद्ध हो जाता है। उसी प्रकार आदमी भी तपस्या करके ओजस्वी, तेजस्वी बन जाता है। तपना तो पड़ेगा ही, क्योंकि बिना तप किए आत्मा परमात्मा नहीं बन सकती है। मुनिश्री ने कहा कि कोयले को भी सफेद बनाया जा सकता है, बस उसे तपाना पड़ेगा। जिस प्रकार दूध को गर्म करने के लिए पहले बर्तन को गर्म करना पड़ता है उसी प्रकार आत्मा को तपाने के लिए पहले शरीर को तपाना पड़ता है। तप से आत्मा से परमात्मा और नर से नारायण बनता है। तप का अर्थ शरीर को सुखाना नहीं है, तप का अर्थ है शरीर में जो कषाय और तीव्र इच्छाएं हैं उनको शांत करना है। इस मौके पर मंच पर मुनिश्री विजयेश सागर महाराज, मुनिश्री विनिबोध सागर महाराज व ऐलक विनियोग सागर महाराज माैजूद रहे।
धर्म चर्चा में आचार्यश्री ने बताया दुख का महत्वः जिनेश्वर धाम तीर्थ पर धर्म चर्चा करते हुए आचार्यश्री यतींद्र सागर महाराज ने कहा कि जिस प्रकार कांटे गुलाब के दुश्मन नहीं अपितु सुरक्षा कवच होते हैं। उसी प्रकार दुख भी हमारी जिंदगी का दुश्मन नहीं है, बल्कि हमारे सुख की सुरक्षा के लिए है। तुम याद रखना सुख भी दुख के बिना अपना वजूद नहीं दिखा सकता है। आचार्यश्री ने कहा कि दुख ही इंसान को इंसान बनाता है। जब सुख हमारे साथ होता है तो संसार के पथ पर कदम भी डगमगाते हैं। दुख ही तो हमें बताता है कि कौन अपना है कौन पराया। दुख हमारा ऐसा परम मित्र होता है जो हमारे अहंकार को तोड़ता है।