सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को शासन द्वारा तमाम तरह की सुविधाएं दिए जाने की बात कही जाती है।तो वही अच्छे माहौल में शिक्षा देकर किताब, गणवेश से लेकर तमाम तरह की सहूलियत देकर उनके अभिभावकों का आर्थिक बोझ भी कम करने का दावा किया जाता है। लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे की सरकारी स्कूलों में इस वर्ष वितरण की गई स्कूल यूनिफार्म (गणवेश) बच्चों का रास नहीं आ रही है। स्व सहायता समूह की महिलाओं से तैयार करवाई गई इन गणवेश में कई तरह की खामिया सामने आ रही है। किसी बच्चे को ड्रेस छोटी, तो किसी को बड़ी ड्रेस दी गई है।तो किसी को उधड़ी हुई ड्रेस थमा दी गई है। जिसकी शिकायत खैरलांजी क्षेत्र के कोथुरना ,आरंभा व तिरोड़ी क्षेत्र के आंजनबिहरी सहित अन्य ब्लाकों के सरकारी स्कूलों से सामने आ चुकी है। जहां के बच्चों और पालको ने गणवेश को लेकर आपत्ति दर्ज करवाई है। वहीं गुणवत्ता को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं। इस पूरे मामले में जिम्मेदार अधिकारी लिखित शिकायत आने पर जांच करवाए जाने की बात कह रहे हैं। मतलब साफ है कि सबको पता है गणवेश में फाल्ट है लेकिन कोई भी जिम्मेदार अधिकारी मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए इसके खिलाफ मोर्चा नही खोल रहा है।जहां मामले में कार्यवाही करना तो बहुत दूर की बात,इस पूरे मामले की अब तक जांच तक नही कराई गई है।
पहले ड्रेस के बदले मिलते थे 600 रु,
आपको बताए कि सरकारी स्कूलों में अध्यनरत बच्चों को राज्य शिक्षा केन्द्र की ओर से पूर्व में दो जोड़ी गणवेश के लिए 600 रुपए की राशि प्रदान की जाती थी। लेकिन वर्ष 2022-23 में पहली से चौथी और छटवीं, सातवीं के बच्चों को राशि मुहैया न कराते हुए महिला समूहों के माध्यम से गणवेश तैयार कर वितरण की जा रही है। वर्तमान में जिले 2172 स्कूलों के 1 लाख 14 हजार 822 बच्चों में से 70 प्रतिशत को गणवेश वितरण कर दिया है।जिनमें कुछ स्थानों से शिकायतें सामने आ रही है।वही अब भी 30 प्रतिशत बच्चे स्कूली ड्रेस से वंचित है।
खैरलांजी से भी सामने आई थी समस्या
जिले की खैरलांजी जनपद क्षेत्र में समूहों के कुल 23 कलस्टर केन्द्रों के माध्यम से 17498 गणवेश का निर्माण किया गया है। जहां कुछ स्थानों पर समूह की महिलाओं ने ठीक से कार्य किया है। वहीं कुछ समूहों की गणवेश में कच्ची सिलाई और बिना माप की गणवेश बनाए जाने की शिकायतें सामने आई है। मामला अभी स्कूलों तक ही सीमिति है। पालक व जनप्रतिनिधी गणवेश को लेकर नाराजगी जता चुके हैं। तो वही जिम्मेदार अधिकारी लिखित शिकायत का इंतजार कर रहे हैं यानी बच्चों की इस समस्या का संज्ञान स्वता: अधिकारी नहीं ले रहे हैं जिसका खामियाजा सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले स्कूली बच्चों को भुगतना पड़ रहा है